अँखियनि ऐसी धरनि धरी।
नंदनँदन देखै सुख पावै, मोसौं रहतिं डरी।।
कबहूँ रहतिं निरखि मुखसोभा, कबहुँ देह सुधि नाही।
कबहूँ कहतिं कौन हरि, को हम, यौ तन्मय ह्वै जाही।।
अँखियाँ ऐसै भजी स्याम कौ, नाहिं रह्यौ कछु भेद।
'सूर' स्याम कै परम भावती, पलक न होत बिछेद।।2403।।