हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 456

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य

श्री हित हरिवंश गौस्‍वामी की ब्रजभाषा गद्य में लिखी हुई दो पत्रियाँ प्राप्‍त हैं जिनको हम पृष्‍ठ 381-82 पद उद्धुत कर चुके हैं। राधावल्‍लभीय साहित्‍य में गद्य का सर्वप्रथम उपयोग श्री ध्रुवदास ने अपनी ‘सिद्धांत विचार लीला’ में किया है। इस लीला में रचना-काल नहीं दिया है। किंतु इसका निर्माण सत्रहवीं शती के उत्तरार्ध में हुआ है, यह निर्विवाद है। संप्रदाय के रहस्‍यमय प्रेम-सिद्धांत के कथन के लिये, उस युग में, गद्य को सफलता पूर्व वाहन बनाना ध्रुवदास जी का ही काम था।

सिद्धांत विचार लीला में प्रश्नों के उत्तर के रूप में प्रतिपाद्य विषय का विकास हुआ है। ध्रुवदास जी प्रश्‍न करते चलते हैं जैसे ‘प्रेम नैम के लक्षण कहा?’ ‘कहा प्रेम,कहा नेम!’ ‘एक ने कही प्रेम अरु काम में कहा भेद है, सो समझाइ देहु,’ इत्‍यादि। प्रश्‍नों के उत्तर उन्‍होंने अपनी उसी मनोवैज्ञानिक शैली में दिये हैं जिसका उपयोग उन्‍होंने अपने पद्यमय प्रेम-वर्णनों में किया है। ध्रुवदास जी का गद्य उनके पद्य जैसा मनोहारी तो नहीं है किंतु वह नितांत गद्यात्‍मक भी नहीं है। उसमें सरसता और सजीवता विद्यमान है। यह विश्‍वास पूर्वक कहा जा सकता है कि ब्रज भाषा गद्य का ऐसा प्रौढ़ और शुद्ध रूप सत्रहवीं शती में अन्‍यत्र दिखलाई नहीं देता। दो उदाहरण देखिये;

‘जहाँ नायक-नायिका बरनन कियो है, नायक अपनौ सुख चाहै नाइका अपनौ रस चाहै, सो यह प्रेम न होइ, साधारण सुख भोग है। जब ताई अपनौ-अपनौ सुख चाहिये तब ताई प्रेम कहाँ पाईये। दोइ सुख, दोइ मन, दोइ रुचि, जब ताई प्रेम कहाँ पाईये है। दोइ सुख, दोइ मन, दोइ रुचि जब ताईं एक न होंइ तब ताई प्रेम कहाँ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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