श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य
श्री हित हरिवंश गौस्वामी की ब्रजभाषा गद्य में लिखी हुई दो पत्रियाँ प्राप्त हैं जिनको हम पृष्ठ 381-82 पद उद्धुत कर चुके हैं। राधावल्लभीय साहित्य में गद्य का सर्वप्रथम उपयोग श्री ध्रुवदास ने अपनी ‘सिद्धांत विचार लीला’ में किया है। इस लीला में रचना-काल नहीं दिया है। किंतु इसका निर्माण सत्रहवीं शती के उत्तरार्ध में हुआ है, यह निर्विवाद है। संप्रदाय के रहस्यमय प्रेम-सिद्धांत के कथन के लिये, उस युग में, गद्य को सफलता पूर्व वाहन बनाना ध्रुवदास जी का ही काम था। सिद्धांत विचार लीला में प्रश्नों के उत्तर के रूप में प्रतिपाद्य विषय का विकास हुआ है। ध्रुवदास जी प्रश्न करते चलते हैं जैसे ‘प्रेम नैम के लक्षण कहा?’ ‘कहा प्रेम,कहा नेम!’ ‘एक ने कही प्रेम अरु काम में कहा भेद है, सो समझाइ देहु,’ इत्यादि। प्रश्नों के उत्तर उन्होंने अपनी उसी मनोवैज्ञानिक शैली में दिये हैं जिसका उपयोग उन्होंने अपने पद्यमय प्रेम-वर्णनों में किया है। ध्रुवदास जी का गद्य उनके पद्य जैसा मनोहारी तो नहीं है किंतु वह नितांत गद्यात्मक भी नहीं है। उसमें सरसता और सजीवता विद्यमान है। यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि ब्रज भाषा गद्य का ऐसा प्रौढ़ और शुद्ध रूप सत्रहवीं शती में अन्यत्र दिखलाई नहीं देता। दो उदाहरण देखिये; ‘जहाँ नायक-नायिका बरनन कियो है, नायक अपनौ सुख चाहै नाइका अपनौ रस चाहै, सो यह प्रेम न होइ, साधारण सुख भोग है। जब ताई अपनौ-अपनौ सुख चाहिये तब ताई प्रेम कहाँ पाईये। दोइ सुख, दोइ मन, दोइ रुचि, जब ताई प्रेम कहाँ पाईये है। दोइ सुख, दोइ मन, दोइ रुचि जब ताईं एक न होंइ तब ताई प्रेम कहाँ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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