श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान
रसिक अनन्य माल- इस ग्रन्थ के कर्ता भगवत मुदित जी प्रसिद्ध महात्मा माधौ मुदित जी के पुत्र थे। माधौ मुदित जी श्री नित्यानंद प्रभु के शिष्य बतलाये जाते हैं। नाभा जी की भक्तमाल के टीकाकार प्रियादास जी ने भगवत मुदित किंवा भगवंत मुदित को ठाकुर गोविन्द देव जी के अधिकारी हरिदास जी का शिष्य बतलाया है। गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की शिष्य परमपरा में होते हुए भी इनका मन राधावल्लभीय रस-सिद्धान्त की ओर आकृष्ट हो गया था और यह उसको बहुत आदर की दृष्टि से देखते थे। इन्होंने प्रबोधानंद सरस्वती के एक ‘शतक’ का ब्रजभाषा पद्य में अनुवाद किया है। यह अनुवाद बाबा वंशीदास द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसके मंगलाचरण में भगवत मुदित जी ने श्री चैतन्य के साथ श्री हरिवंश की भी वन्दना की है तथा अनुवाद की समाप्ति में अपने भजन को हित-संगी रसिकों के रंग में रंगा हुआ बतलाया है- इष्ट चंद विन्द वर, राधा जीवन प्राण धन। हित संगी रंगी भजन, कहत सुनत कल्याण बन।। भगवत मुदित जी ने इस अनुवाद को सम्वत 1707 के चैत्र मास में पूर्ण किया है। 'सम्वत् दस पै सात सै सात बरस हैं जानि। चैत्र मास में चतुर वर भाषा कियौ बखानि।। ‘रसिक अनन्य माल’ में रचना काल नहीं दिया हुआ है। इस ग्रन्थ की समाप्ति गोस्वामी दामोदर चन्द्र जी के शिष्यों के चरित्रों के साथ हुई है। श्री दामोदरचन्द्र जी का जन्म सं. 1634 में और निकुंजवास सं. 1714 में हुआ था। भगवत मुदित जी ने इनको श्री हरिवंश की ‘विजय मूर्ति’ बतलाया है और लिखा है कि इनके अनेक शिष्य-प्रशिष्य प्रसिद्ध रसिक अनन्य हुए हैं- तिनके शिष्य प्रशिष्य बहु रसिक अनन्य प्रसिद्ध। |
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज