हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 10

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


श्री हरिवंश के जीवन काल में लिख हुआ उनका कोई चरित्र प्राप्त नहीं है। उनके निकुंज-गमन के लगभग एक शताब्दी बाद राधावल्लभीय रसिक संतों के चरित्रों का संकलन प्रथम बार ‘रसिक अनन्य’ के नाम से किया गया। इसमें श्री हरिवंश का चरित्र नहीं दिया गया हैं, किन्तु उनके शिष्यों के इति-वृत्त से स्वयं हित जी के चरित्र पर काफी प्रकाश पड़ जाता है। यह ग्रन्ध अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में लिखा गया है और इसकी रचना के बाद इसी शताब्दी में अन्य कई ऐतिहासिक ग्रन्थ लिखे गये। यह क्रम बीसवीं शताब्दी तक चलता रहा है, किन्तु हमने अठारहवीं शताब्दी के ग्रन्थों को ही उपादानों में ग्रहण किया है। बाद के ग्रन्थों में लगभग वही बातें पाई जाती हैं जो इन ग्रन्थों में हैं। कहीं-कहीं कुछ घटनायें विस्तार पूर्वक वर्णान कर दी गई हैं।

रसिक अनन्य माल- इस ग्रन्थ के कर्ता भगवत मुदित जी प्रसिद्ध महात्मा माधौ मुदित जी के पुत्र थे। माधौ मुदित जी श्री नित्यानंद प्रभु के शिष्य बतलाये जाते हैं। नाभा जी की भक्तमाल के टीकाकार प्रियादास जी ने भगवत मुदित किंवा भगवंत मुदित को ठाकुर गोविन्द देव जी के अधिकारी हरिदास जी का शिष्य बतलाया है। गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की शिष्य परमपरा में होते हुए भी इनका मन राधावल्लभीय रस-सिद्धान्त की ओर आकृष्ट हो गया था और यह उसको बहुत आदर की दृष्टि से देखते थे।

इन्होंने प्रबोधानंद सरस्वती के एक ‘शतक’ का ब्रजभाषा पद्य में अनुवाद किया है। यह अनुवाद बाबा वंशीदास द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसके मंगलाचरण में भगवत मुदित जी ने श्री चैतन्य के साथ श्री हरिवंश की भी वन्दना की है तथा अनुवाद की समाप्ति में अपने भजन को हित-संगी रसिकों के रंग में रंगा हुआ बतलाया है-

इष्ट चंद विन्द वर, राधा जीवन प्राण धन। हित संगी रंगी भजन, कहत सुनत कल्याण बन।।

भगवत मुदित जी ने इस अनुवाद को सम्वत 1707 के चैत्र मास में पूर्ण किया है।

'सम्वत् दस पै सात सै सात बरस हैं जानि। चैत्र मास में चतुर वर भाषा कियौ बखानि।।

‘रसिक अनन्य माल’ में रचना काल नहीं दिया हुआ है। इस ग्रन्थ की समाप्ति गोस्वामी दामोदर चन्द्र जी के शिष्यों के चरित्रों के साथ हुई है। श्री दामोदरचन्द्र जी का जन्म सं. 1634 में और निकुंजवास सं. 1714 में हुआ था। भगवत मुदित जी ने इनको श्री हरिवंश की ‘विजय मूर्ति’ बतलाया है और लिखा है कि इनके अनेक शिष्य-प्रशिष्य प्रसिद्ध रसिक अनन्य हुए हैं-

तिनके शिष्य प्रशिष्य बहु रसिक अनन्य प्रसिद्ध।
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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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