विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है-) श्यामसुन्दर! इतने दिन (तुमने) कहाँ लगा दिये? आने के लिये (तुम) कह गये थे, वह तो अबतक आये नहीं। चलते समय (हमारी ओर) देखते हुए तुमने जो मुस्कराकर मधुर वाणी सुनायी थी, वह (अन्तिम शब्द हमारे लिये भुलावा देने वाले) ठग के लड्डू (के समान) हो गयी है और उसने हमारे धैर्य को अस्त-व्यस्त कर दिया है। समस्त विश्व को मोहित करने वाले श्रीयदुनाथ के गुण जाने नहीं गये, मानो इसी लज्जा से (उन्होंने) यहाँ अपने चरणों का दर्शन नहीं दिया (मथुरा में जो उलटे-सीधे कार्य किये, उसी लज्जा से वे नहीं आते)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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