विरह-पदावली -सूरदास
(314) (कोई गोपी कह रही है- सखी!) हमसे कमल लोचन (श्यामसुन्दर) दूर हो गये और सखी! इन नेत्रों की औषधि (रूप वे अब) मथुरा से भी जाना कहते हैं। श्यामसुन्दर के जाने की बात सुनकर सब देखने लगीं कि उनके रथ की धूलि उड़ती तो नहीं है। सूरदास जी कहते हैं- ‘मेरे स्वामी! उनसे कुछ उत्तर देते नहीं बनता, उनके नेत्रों में जल (अश्रु) भरा हुआ है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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