स्थूलशिरा

स्थूलशिरा हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार राजा युधिष्ठिर की सभा में विराजने वाले एक ऋषि थे। युधिष्ठिर भी इनके सुरम्य आश्रम में गये थे। ये शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह को देखने के लिए उनके निकट गये थे।[1]

  • एक बार स्थूलशिरा महर्षि मेरु पर्वत के पूर्वोत्तर भाग में बड़ी भारी तपस्या कर रहे थे, उनके तपस्या करते समय सब प्रकार सुगन्ध लिये पवित्र वायु बहने लगी। उस वायु ने प्रवाहित होकर मुनि के शरीर कर स्पर्श किया। तपस्या से संतप्त शरीर वाले उन कृशकाय मुनि ने उस वायु के स्पर्श से अपने हृदय में बड़े संतोष का अनुभव किया। वायु के द्वारा व्यजन डुलाने से संतुष्ट हुए मुनि के समक्ष वृक्षों ने तत्काल फूल की शोभा दिखलायी। इससे रुष्ट होकर मुनि ने उन्हें शाप दिया कि तुम हर समय फूलों से भरे-पूरे नहीं रहोगे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत सभापर्व- 4.11; वनपर्व- 135.8, अनुशासन पर्व- 26.5

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 543 |

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