सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग केदारौ
(308) हे मन! श्री नन्दनन्दन के चरणों का भजन कर (आश्रय पकड़ ले)। वे श्रेष्ठ कमल से भी अत्यन्त मनोहर तथा समस्त सुखों को देने वाले हैं। सनकादि ऋषि तथा शंकर जी उनका ध्यान किया करते हैं, वेद-पुराण उनका ही (माहात्म्य) वर्णन करते हैं वे शेष नाग, शारदा, देवर्षि नारद तथा संतों के चिन्तन के आधार (विषय) हैं। उन चरणों के पराग (धूलि) -का प्रताप अत्यन्त दुर्लभ है (वह धूलि बड़ी कठिनता से मिलती है)। वह लक्ष्मी का मंगल करने वाली है (लक्ष्मी जी उस धूलि को पाने के लिये चरणों की ही सेवा करती हैं)। उनका स्पर्श करके गंगा जी पावन (औरों को पवित्र करने वाली) और तीनों लोकों के घरों को (पवित्रता की) सम्पत्ति से पूर्ण करने वाली हो गयीं। जो चित्त से उन (चरणों) -का चिन्तर करते हैं, (वे केवल अपना ही नहीं) संसार के पाप को नष्ट कर डालते हैं, स्वयं अपना और दूसरों का भी उद्धार करने में समर्थ हो जाते हैं कितने ही पति भगवन्नाम लेकर मुक्त हो गये, वैकुण्ठ में उन्होंने निवास प्राप्त किया। जिन चरणों की धूलि का स्पर्श करके गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार हुआ और उसे सद्गति मिली, जिन चरणों की महिमा केवट ने प्रकट की कि उन चरणों को धोकर अपने मस्तक पर (चरणोदक) चढ़ाया, श्री कृष्णचन्द्र के उन चरणों का मकरन्द (प्रेमामृत) अत्यन्त पावन है, उन चरणों की तुलना में और कोई है ही नहीं। सूरदास जी कहते हैं- उन चरण कमलों का भजन करो, जिससे जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाय।
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