सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल
(296) जब तक मन से कामनाएँ न छूट जायँ, तब तक योग, यज्ञ, व्रत आदि करने से क्या लाभ? ये तो चावल रहित भूसी को कूटने के समान हैं। तीर्थों में स्नान करने से, शरीर में भस्म लगाने से या जटा-जूट रखने से क्या लाभ? अठारहों पुराणों को पढ़ने या ऊपर उठने वाले धुएँ को पीने (उलटे लटक कर सिसर के नीचे धूनी जला कर तप करने) से क्या लाभ? संसार की शोभा और सब लोगों में प्राप्त बड़प्पन- इनसे तो (कर्म बन्धन) थोड़ा भी घटता नहीं। करता कुछ और है, कहता कुछ और ही है, मन दसों दिशाओं में भोगता रहता है (इससे तो कुछ होना नहीं)। काम, क्रोध, मद, लोभ- ये (जीव के) शत्रु हैं, यदि इन सबसे छूट जाय- सूरदास जी कहते हैं- तभी अज्ञान का नाश होगा और ज्ञानाग्नि की लपटें (प्रकाश) फूट पड़ेगी (प्रकट हो जायँगी)। |
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