सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(295) अब तो कहीं जा कर हरि-भक्ति का आनन्द प्राप्त करना चाहिये। ऐसा मार्ग पकड़ना चाहिये, जिससे न जाने (मरने) का शोक हो, न आने (जन्म लेने) का आनन्द। कोमल वाणी कही जाय, सबके प्रति दीनता रखी जाय और सर्वदा आनन्दित रहा जाय। वाद-विवाद (तर्क-वितर्क), हर्ष और शोक आदि सभी द्वन्द्वों को सहन कर लिया जाय। यदि मन में ऐसी ममता आ जाय तो उस सुख का वर्णन कहाँ तक किया जाय। सूरदास जी कहते हैं- ‘हे प्रभु! (यह अवस्था प्राप्त होने पर) आठों सिद्धियाँ, नवों निधियाँ या (और) जिस किसी भी वस्तु की इच्छा हो, वह स्वयं पास आ जायगी।'
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