सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(276) गोपाल का किया ही सब कुछ होता है, (किसी कार्य के होने का कारण) जो अपने पुरुषार्थ को मानता है, वह अत्यन्त झूठा है। साधन (उपाय), मन्त्र, यन्त्र, उद्योग, बल- इन सबको धो डालो (इनका भरोसा छोड़ दो)। नन्द नन्दन ने जो कुछ (भाग्य में) लिख रखा है, उसे कोई मिटा नहीं सकता। दुःख-सुख, लाभ-हानि का विचार करके तुम क्यों रो-रो कर मरते हो (क्यों व्यर्थ चिन्तित होते हो)? सूरदास जी कहते हैं- मेरे स्वामी श्याम सुन्दर करुणामय है (उनका प्रत्येक विधान दया से पूर्ण है); अतः उनके चरणों में ही मन को पिरोये (लगाये) रहो। |
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