सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग
(252) हे केशव! जिन-जिस ने हृदय से आपका गुण गान किया, हे मेरे स्वामी श्री गोविन्द! उन सभी ने आपके द्वारा अभयपद (मोक्ष) प्राप्त किया। आपकी यह सेवा है कि समय-असमय (चाहे जब और चाहे जैसे) किसी के द्वारा भी मुख से आपका नाम निकल गया, बस, हे कृपा निधान! आपने (कभी) एक क्षण की भी देर नहीं की, उसी-उसी को अपने पास (अपने धाम में) बुला लिया। अजामिल तो मेरा मुख्य मित्र था (मेरे जैसा ही पापी था), जाते समय उसने मुझे यह बात समझा दी थी (अजामिल के उद्धार से मैंने यह शिक्षा ले ली)। अन्य कृपण (पापी) लोगों की बात कहाँ-कहाँ तक कहूँ, उन सबों ने मेरे कान में यही बात कही है। किंतु आपने व्याध, गीध, गणिका का नाम जिस कागज (सूची) में लिखा, उसी चिट्ठी (सूची) में मेरा नाम नहीं चढ़ाया (कि इस पापी का भी उद्धार करना है)। इसलिये पतितों की पंचायत (समूह)- में मैं लज्जा से मरा जाता हूँ कि आपने सूरदास को सब प्रकार से विस्मृत कर दिया। |
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