सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(245) मेरे स्वामी दीनों पर दया करने वाले, प्रेम से परिपूर्ण, सबके हृदय की दशा जानने वाले ऐसे अनाथों के नाथ हैं कि जब द्रौपदी को (कौरव) वस्त्र रहित (नंगी) कर रहे थे, तब ‘शरण हूँ’ इतना शब्द ही उससे कहा गया कि श्री हरि ने उसके वस्त्र को अनन्त कोटि वस्त्रों से पूर्ण करके (साड़ी को ओर-छोर हीन बनाकर) शत्रुओं का गर्व नष्ट कर दिया ब्राह्मण अजामिल ने पुत्र के उद्देश्य से और गणिका ने तोते के निमित्त से भगवन्नाम लेकर प्रभु से गजराज और ग्राह दोनों को (भगवान् ने) संसार से मुक्त कर दिया। (पिता के) अत्यन्त त्रास देने से अपने भक्त (प्रह्लाद) को दुखी जान कर भक्त के लिये भगवान् ने मनुष्य का शरीर और सिंह का मुख - इस प्रकार नृसिंहरूप धारण किया और भक्त के शत्रु (हिरण्यकशिपु) को मार कर भक्त को आनन्द दिया। मेरे स्वामी गोपाल लाल! आपकी कृपा से किस-किस ने अपना (संसार में भटकने का) श्रम दूर नहीं किया। किंतु इस अंधे अपराधी (पापी) सूरदास को ही आपने क्यों भुला दिया?
|
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पृष्ठ संख्या |