सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग अहीरी
(240) संसार-सागर को मैंने तैरकर पार नहीं कर लिया। इन पतितों की ओर देख-देखकर (अपने उद्धार की भी उनके समान ही आशा करके) पीछे होने वाले परिणाम की चिन्ता मैंने नहीं की। अजामिल, गणिका आदि (पापियों) को मैंने अगुआ बनाया (उनके मार्ग का ही मैंने अनुसरण किया), तैर कर पार जाने के लिये पकड़ कर उन्होंने मुझे ठेल दिया (उनको आदर्श मान कर मैं संसार में आसक्त हो गया)। किंतु साथ लेकर भी (अपने समान पापी होने पर भी) उन्होंने मुझे बीच में ही अत्यन्त अनाथ और अकेला छोड़ दिया (उनके समान मेरा उद्धार हुआ नहीं)। (यह संसार-सागर) अत्यन्त गहरा है, इसका किनारा भी पास नहीं है, किस प्रकार इससे पार हुआ जा सकता है? (मेरे लिये तो यह अशक्य ही है।) आपका नाम जो पार होने का आधार है, उसकी ओर देखता नहीं (उसमें रुचि नहीं)। जहाँ-तहाँ डुबकी खा रहा हूँ। (स्थान-स्थान पर पतन हो रहा हैं) मुझे देख-देख सब उच्चस्वर से ताली बजा-बजा कर आपस में (मेरी हँसी उड़ाते हुए) हँसते हैं। पिछले लोगों (जिनका पहिले उद्धार हो गया, उन पापियों) -के समान उन लोगों (वर्तमान के ऐसे लोगों ने जिनका आपने उद्धार कर दिया)- ने भी मेरी वही गति की, मध्य-धारा में ही (मुझे सहारा देने वाली) रस्सी तोड़ दी (मुझसे अपना सम्बन्ध त्याग दिया)। अब तो मैं आपके चरण-कमल रूपी नौका की आशा लगाये बिना छाया के (बिना सहारे) डूब रहा हूँ। सूरदास जी कहते हैं- (हे स्वामी!) अब भी आप देखा ही करेंगे? जल्दी से मेरी बाँह क्यों नहीं पकड़ लेते? (अब तो मुझे सहारा देकर बचा लीजिये) |
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