सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ
(237) हे प्रभु! आपका नाम ‘भक्तवत्सल’ है। आपने जल में पड़ी विपत्ति (ग्राह द्वारा ग्रस्त होने पर प्राण संकट) से गजराज को बचा लिया और गोपों के लिये (उनकी वर्षा से रक्षा के लिये) गोवर्धन पर्वत धारण किया। जिस क्षण द्रौपदी ने उच्च स्वर से, हे हरि! आपको पुकारा कि ‘मैं अनाथ हूँ, मेरा कोई रक्षक नहीं है, दुःशासन मेरे शरीर को नंगा कर रहा है!’ (उसी समय वस्त्र बढ़ा कर) आपने उसके महान् दुःख को मिटा दिया। जरासंघ जैसे (बलवान्) असुर का संहार करवा के आपने अनेकों राजाओं को उसकी कैद से छुड़ाया तथा उन राजाओं की पत्नियों ने (आपका गुणगान करके) आपके सुयश का विस्तार किया। अपने (दीन बन्धु) नाम की लज्जा कीजिये। दुर्वासा के लिये आपने चक्र सम्हाल लिया (उनके पीछे अपना चक्र लगा दिया) और भक्त अम्बरीष के शाप को टाल दिया। (दुर्वासा ने जो शाप रूप कृत्या अम्बरीष पर प्रयोग की, उसे आपने नष्ट कर दिया।) दुर्योधन का गर्व (उनका निमन्त्रण अस्वीकार करके) आपने नष्ट कर दिया और शूद्र जातीय विदुर जी के यहाँ भोजन किया। सदा के दीन महान अपराधी इस दुष्ट सूरदास को ही आपने क्यों भुला दिया? वह (सूरदास) तो हे प्रभु! आपका नाम ले रहा हैं हे वनमाली! हे भगवन्! मेरा उद्धार करो! |
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