(226)
प्रभु जू, हौं तो महा अधमीं ।
अपत, उतार, अभागौ, कामी, विषयी, निपट कुकर्मी ।।
घाती, कुटिल, ढीठ, अतिक्रोधी, कपटी, कुमति, जुलाई ।
औगुन की कछु सोच न संका, बड़ौ दुष्ट, अन्याई ।।
बटपारो, ठग, चोर उचक्का, गाँठि-कटा, लठबाँसी ।
चंचल, चपल, चबाइ, चौपटा, लिए मोह की असी ।।
चुगल, ज्वारि, निर्दय, अपराधी, झूठी, खोरौ खूटा ।
लोभी, लौंद, मुकरबा, झगरू, बड़ौ पढैलौ, लूटा ।।
लंपट, धूत, पूत दमरी कौ, कौड़ी कौड़ी जोरै ।
कृपन, सूम, नहिं खाइ खवावै, खाइ मारि कै ओरै ।।
लंगर, ढीठ, गुलामी, टूंडक, महा मसखरा, रूखा ।
मचमा, अकलै-मूल, पातर, खाउँ खाउँ करै भूखा ।।
निर्धिन, नीच, कुलज, दुर्बुद्धी, भोंदू, नित कौ रोऊ ।
तृष्ना हाथ पसारे निसि-दिन, पेट भरे पर सोऊ ।।
बात बनावन कौं है नीकौ, वचन-रचन समुझावै ।
खाद-अखाद न छाँड़ैं अब लौं, सब मैं साधु कहावै ।।
महा कठोर, सुन्न हिरदै को, दोष देन कों नीकों ।
बड़ौ कृतघ्नी और निकम्मा, बेधन राँकौ-फीकौ ।।
महामत बुधि-बल कौ होनौ, देखि करै अंधेरा ।
बमनहिं खाइ, खाइ सो डारै, भाषा कहि कहि टेरा ।।
मूकू निंद निगोड़ा, भोंड़ा, कायर, काम बनावै ।
कलहा, कुही, मूष रोगी अरु काहूँ नैंकु न भावै ।।
पर-निंदक, परधन को द्रोही, पर संतापनि बोरौ ।
औगुन और बहुत हैं मो मै, कह्यौ सूर मैं थोरौं ।।226।।
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