सूर विनय पत्रिका पृ. 172

सूर विनय पत्रिका

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग सारंग

(144)

जो सुख होत गुपालहि गाऐं ।
सी सुख होत न जप-तप कान्हें, कोटिक तीरथ न्हाऐं ।
दिऐं लेत नहिं चारि पदारथ, चरन-कमल चित लाऐं ।
तीन लोक तृन सन करि लेखत, नंद-नँदन उर आऐं ।
बंसीबट, बृंदाबन, जमुना तजि बैंकुठ न जावै ।
सूरदास हरि कौ सुमिरन करि, बहुरि न भव-जल आवै ।।144।।

श्रीगोपाल का गुणगान करने में जो सुख होता है, वह सुख जप, तप करने तथा करोड़ों तीर्थों में स्नान करने से भी नहीं प्राप्त होता। (भगवान् के) चरकमलों में चित्त लगा लेने पर (भक्त) देने पर भी (अर्थ, धर्म, काम, मोक्षरूप) चारों पदार्थ नहीं लेता। श्रीनन्दनन्दन के हृदय में आ जाने पर (वह) तीनों लोकों (के वैभव) को तृण के समान (तुच्छ) समझता है। वृन्दावन, वंशीवट और यमुना जी को छोड़कर वह वैकुण्ठ भी जाना नहीं चाहता। सूरदास जी कहते हैं- (ऐसा भक्त) श्रीहरि का स्मरण करता है, इससे फिर संसार-सागर में नहीं आता।

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सूर विनय पत्रिका
क्रम संख्या पद पृष्ठ संख्या
1. अचंभौ इन लोगनि कौं आवै 59
2. अजहूँ सावधान किन होहि 324
3. अदभुत जस बिस्‍तार करन कौं 314
4. अद्भुत राम नाम कै अंक 180
5. अधम की जौं देखौं अधभाई 271
6. अनाथ के नाथ प्रभु कृष्‍न स्‍वामी 313
7. अपनी भक्ति देहु भगवान 360
8. अपनै जान मैं बहुत करी 202
9. अपुने कौं कों न आदर देइ 250
10. अब कैसै पैयत सुख मांगे 88
11. अब कैं नाथ, मोहिं उधारि 188
12. अब तुम नाम गहो मन नागर 181
13. अब धौं कहो, कौन दर जाउँ 278
14. अब मन, मानि धौं राम दुहाई 142
15. अब मेरी राखौ लाज मुरारी 321
16. अब मैं जानी, देह बुढानी 129
17. अब मैं नाच्‍यौ बहुत गुपाल 239
18. अब मोहि मज्‍जत क्‍यौं न उबारौ 308
19. अब मोहिं सरन राखियै नाथ 219
20. अब वे विपदाहू न रहीं 130
21. अब सिर परी ठगौरी देव 72
22. अब हौं माया-हाथ बिकानौं 70
23. अब हौं हरि, सरनागत आयौ 258
24. अविगत-गति कछु कहत न आवै 3
26. अविगत-गति जानी न परै 292
25. अपुनपौ, आपुन ही बिसरयौ 337
26. अपुनपौ आपुन ही मैं पायौ 334
27. आछौ गात अकारथ गारयौ 190
28. आजु हौ एक-एक करि टरिहौं 220
29. इक कौं आनि ठेलत पाँच 301
30. इत-उत देखत जनम गयौ 74
31. इहाँ कपिल सौ माता कह्यौ 338
32. इहिं बिधि कहा घटौगौ तेरौ 96
33 इहिं राजस को को न बिगोयौ 77
34 ऐसी कब करिहौ गोपाल 289
35 ऐसी को करी अरु भक्त कीजै 6
36 ऐसे और बहुत खल तारे 307
37 ऐसे प्रभु अनाथ के स्‍वामी 290
38 ऐसै करत अनेक जन्‍म गए 240
39 ऐसैहिं जनम बहुत बौरायौ 35
40 और न काहुहि जन की पीर 21
41 औसर हारयौ रे, तैं हारयौ 163
42 अंत के दिन कौ हैं घनस्‍याम 104
43 कब लगि फिरिहौं दीन बह्यौ 275
44 कवहूं तुम नाहिंन गहरु कियौ 295
45 करनी करुनासिंधु की, मुख कहत न आवै 5
46 करि मन नंद-नंदन ध्‍यान 368
47 करि हरि सौं सनेह मन साँचौ 111
48 करी गोपाल की सब होइ 325
49 कहत हे, आगै जपिहैं राम 82
50 कहा कमी जाके राम धनी 50
51 कहा गुन बरनौं स्‍याम, तिहारे 31
52 कहा लाइ तैं हरि सौं तोरी 127
53 कहावत ऐसे त्‍यागी दानि 221
54 का न कियौ जन-हित जदुराई 8
55 काया हरि कै काम न आई 120
56 काहू के कुल तन न बिचारत 16
57 काहु के बैर कहा सरै 42
58 किते दिन हरि-सुमिरन बिनु खोए 75
59 कीजै प्रभु अपने विरद की लाज 195
60 कृपा अब कीजिऐ बलि जाउँ 214
61 को को न तरयौ हरि-नाम लिएं 179
62 कौन गति करिहौ मेरी नाथ 210
63 कौन सुनै यह बात हमारी 273
64 क्‍यौं तू गोविंद नाम विसारौ 109
65 गरब गोबिंदहि भावत नाहीं 282
66 गाइ लेहु मेरे गोपालहिं 102
67 गोविंद गाढ़े दिन के मीत 39
68 गोविंद प्रीति सबनि की मानत 17
69 गोबिंद सौ पति पाइ 54
70 चकई री, चलि चरन-सरोवर 165
71 चरन-कमल बंदौ हरि राइ 1
72 चलि सखि, तिहि सरोवर जाहिं 166
73 चौपरि-जगत मड़े जुग बीते 85
74 जग‍पति नाम सुन्‍यौ हरि, तेरौ 309
75 जग मैं जीवत ही कौ नातौ 126
76 जन की और कौन पति राखै 19
77 जन के उपजत दुख किन काटत 194
78 जनम गँवायौ ऊआबाई 155
79 जनम-जनम-जब-जब, जिहि-जिहि 58
80 जनम तौं ऐसेहिं बीत गयौ 107
81 जनम तौ बादिहि गयौ सिराइ 241
82 जनम साहिवी करत गयौ 92
83 जनम सिरानौं अटकैं-अटकैं 117
84 जनम सिरानौई सौ लाग्‍यौ 101
85 जनम सिरानौ ऐसैं-ऐसैं 118
86 जन यह कैसे कहै गुसाई 300
87 जब जब दीननि कठिन परी 20
88 जब तैं रसना राम कह्यौ 178
89 जहां-जहां सुमिरे हरि जिहिं बिधि 9
90 जाकों दीनानाथ निवाजैं 47
91 जाकौ मनमोहन अंग करै 48
92 जाकौ मन लाग्‍यौ नँदलालहिं 56
93 जाकौ हरि अंगीकार कियौ 49
94 जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै 114
95 जा दिन संत पाहुने आवत 329
96 जानिहौं अब वाने की बात 245
97 जापर दीनानाथ ढरै 45
98 जिन जिनही केसव उर गायौ 298
99 जिहिं तन हरि भजिबौ न कियौ 62
100 जे जन सरन भजे वनवारी 28
101 जैसे तुम गज कौ पाउं छुड़ायौ 25
102 जैसै राखहु तैसैं रहौं 274
103 जो घट अंतर हरि सुमिरै 110
104 जो सुख होत गुपालहि गाऐं 172
105 जौ अपनौ मन हरि सौं रांचै 366
106 जौ जग और बियौ कोउ पाऊँ 251
107 जौ तू राम-नाम-धन धरतौ 173
108 जो पै तुमहीं बिरद बिसारौ 243
109 जौ पै यहै बिचार परी 310
110 जौ प्रभु , मेरे दोष बिचारैं 265
111 जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं 57
112 जो लौं मन-कामना न छूटैं 357
113 जौ लौं सत सरूप नहिं सूझत 336
114 जौ हम भले बुरे तौ तेरे 280
115 जौ हरि-व्रत निज उर न धरैगौ 103
116 झूठे ही लगि जनम गँवायौ 125
117 ठकुरायत गिरिधर की सांची 23
118 तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग 159
119 तब तैं गोबिंद क्‍यौं न सँभारे 161
120 तब विलंब नहिं कियौ 262
121 तातै जानि भजे बनवारी 37
122 तातै तुम्‍हरौ भरोसौ आवै 296
123 तातैं वि‍पति-उधारन गायौ 288
124 तातैं सेइयै श्री जदुराई 328
125 ताहु सकुच सरन आए 263
126 तिहारे आगैं बहुत नच्‍यौ 284
127 तिहारौ कृष्‍न कहत कह जात 137
128 तुम कब मो सौं पतित उधारयौ 218
129 तुम तजि और कौन पै जाउँ 277
130 तुम प्रभु, मोसौं बहुत करी 203
131 तुम बिन भूलोइ भूलौ डोलत 287
132 तुम विनु साँकरै को काकौ 304
133 तुम हरि साँकरे कै साथी 303
134 तुम्हरी एक बड़ी ठकुराई 183
135 तुम्हरी कृपा गुपाल गुसाईं 201
136 तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान 362
137 (गोपाल) तुम्‍हारी माया महाप्रबल 65
138 तुम्‍हरैं भजन सबहि सिंगार 53
139 तुम्‍हरौ नाम तजि प्रभु जगदीसर 215
140 तेऊ चाहत कृपा तुम्‍हारी 276
141 ते दिन बिसरि गए इहाँ आए 144
142 तेरौ तब तिहिं दिन, को हितू 105
143 तौ लगि बेगि हरौ किन पीर 291
144 थौरे जीवन भयौ तन भारौ 238
145 दिन दस लेहि गोबिंद गाइ 139
146 दिन द्वै लेहु गोविंद गाइ 140
147 दीन कौ दयाल सुन्‍यौ 306
148 दीन जन क्‍यौं करि आवै सरन 71
149 दीन-दयाल, पतित-पावन प्रभु 215
150 दीन-नाथ अब बारि तुम्‍हारी 206
151 देवहूति कह, भक्ति सो कहियै 340
152 देवहूति यह सुनि पुनि कह्यौ 348
153 द्वै मैं एकौ तौ न भई 123
154 धोखैं ही धोखैं डहकायौ 153
155 धोखैं ही धोखैं बहुत बह्यौ 154
156 नर तैं जनम पाइ कह कीनो 94
157 नर देही पाइ चित चरन-कमल दीजै 365
158 नहिं अस जनम बारंबार 116
159 नाथ अनाथनि ही के संगी 26
160 नाथ सकौ तौ मोहिं उधारौ 217
161 (श्री) नाथ सासंगधर कृपा करि 294
162 नीकैं गाइ गुपालहिं मन रे 363
163 नैननि निरखि स्याम-स्वरूप 335
164 पढ़ौ भाइ, राम-मुकुंद-मुरारि 171
165 पतितपावन जानि सरन आयो 293
166 (हरि) पतितपावन, दीन बँधु 264
167 पतित पावन हरि, बिरद तुम्‍हारौ 219
168 पहिलै हौं ही हो तब एक 333
169 प्रभु कौ दखौ एक सूभाइ 11
170 प्रभु जू, यौं कीन्‍हीं हम खेती 267
171 प्रभु जू, हौं तो महा अधर्मी 269
172 प्रभु, तुम दीन के दुख-हरन 253
173 प्रभु तेरौ बचन भरोसौ सांचो 41
174 प्रभु, मेरे गुन-अवगुन न बिचारौ 199
175 प्रभु मेरे, मोसौ पतित उधारौ 244
176 प्रभु मैं पीछौ लियौ तुम्‍हारौ 318
177 प्रभु हौं बड़ी बेर कौ ठाढ़ौ 223
178 प्रभु हौ सब पतितनि को टीकौ 224
179 प्रीतम जानि लेहु मन माही 108
180 फिरि फिरि ऐसोई है करत 78
181 बड़ी है राम नाम की ओट 169
182 बहुरि की कृपाहू कहा कृपाल 272
183 बासुदेव की बड़ी बढ़ाई 4
184 बिचारत ही लागे दिन जान 128
185 बिनती करत मरत हौ लाज 185
186 विनती सुनौ दीन की चित दै 63
187 बिरथा जनम लियौ संसार 119
188 बिरद मनौ वरियाइन छाँड़े 299
188 विषया जात हरष्‍यौ गात 332
189 बौरे मन, रहन, अटल करि जान्‍यौ 143
190 बौरे मन, समुझि-समुझि कछु चेत 146
200 बंदौ चरन-सरोज तिहारे 2
201 भक्तनि हित तुम कहा न कियौ 33
202 भ-क्‍तछल प्रभु, नाम तुम्‍हारौ 281
203 भक्त सकामी हुँ जो होइ 350
204 भक्ति कब करिहौ, जनम सिरानौ 156
205 भक्ति-पंथ कौं जो अनुसरै 358
206 भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै 359
207 भक्ति बिना जौ कृपा न करते 254
208 भक्ति बिनु बैल विराने ह्वैहौ 158
209 भजन बिनु कूकर-सूकर जैसौ 60
210 भजन बिनु जीवत जैसैं प्रेत 61
211 भजहु न मेरे स्‍याम मुरारी 311
212 भजि मन नंद-नंदन-चरन 369
213 भरोसौ नाम कौ भारी 286
214 भवसागर मैं पैरि न लीन्‍हौ 285
215 भावी काहू सौं न टरै 327
216 भृंगी री भजि स्‍याम-कमल पद 167
217 मन तोसौं किती कही समुझाइ 141
218 मन, तोसौं कोटिक बार कही 148
219 मन-बच-क्रम मन, गोविंद सुधि करि 135
220 मन बस होत नाहिने मेरे 259
221 मन रे, माधब सौं करि प्रीति 149
222 महा प्रभु, तुम्‍हें बिरद की लाज 196
223 माधौ जू जौ जन तै बिगरै 204
224 माधौ जू, तुम कब जिय बिसरौ 242
225 माधौ जू, मन माया बस कीन्‍हौ 69
226 माधौ जू, मन सबही विधि पोच 191
227 माधौ जू, मन हठ कठिन परयौ 189
228 माधौ जू मोतै और न पापी 226
229 माधो जू, मोहि काहे की लाज 235
230 माधौ जू यह मेरी इक गाइ 81
231 मावौ जू, सो अपराधी हौ 236
232 माधौ जू, हों पतित-सिरोमनि 246
233 माधौ, नैंकु हटकौ गाइ 79
234 माया देखत ही जु गई 73
235 मेरी कौन गति ब्रजनाथ 212
236 मेरी तौ गति-पति तुम 279
237 मेरी बेर क्‍यौं रहे सोचि 249
238 मेरी सुधि लीजौ हो ब्रजराज 319
239 मेरे हृदय नाहिं आवत हो 317
240 मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै 361
241 मेरौ मन मति-हीन गुसाई 193
242 मैं तौ अपनी कही बड़ाई 260
243 मो सम कौन कुटिल खल कामी 233
244 मौसौं पतित न और गुसाईं 232
245 मौसौं पतित न और गुसाईं 232
246 मोसौ पतित न और हरे 248
247 मोसौं बात सकुच तजि कहियै 222
248 मोहन के मुख ऊपर बारी 38
249 मोहिं प्रभु तुमसों होड़ परी 216
250 यह आसा पापिनी दहै 76
251 यहई मन आनंद-अवधि सब 97
252 यह सब मेरीयै आइ कुमति 124
253 रह्यौ मन सुमिरन कौ पछितायौ 95
254 राम न सुनिरयौं एक घरी 100
255 (मन) राम-नाम-‍सुमिरन बिनु 157
256 राम भक्तवत्‍सल निज वानौ 14
257 रे मन, अजहूं क्‍यौं न सम्‍हारै 90
258 रे मन, आपु कौं पहिचानि 99
259 रे मन, गोविंद के ह्यै रहियै 89
260 रे मन, छाँड़ि विषय कौ रँचिबो 84
261 रे मन, जग पर जानि ठगायौ 83
262 रे मन, जनम अकारथ खोइसि 160
263 रे मन, निपट निलज अनीति 145
264 रे मन मूरख, जनम गँवायौ 162
265 रे मन्, राम सौं करि हेत 134
266 रे मन, समुझि सोचि बिचारि 132
267 रे मन, सुमिरि हरि हरि हरि 131
268 रे सेठ, बिन गोविंद सुख नाहीं 123
269 सकल तजि, भजि मन चरन मुरारि 323
270 सब तजि भजिऐ नंद कुमार 364
271 सबनि सनेहौ छाँ‍ड़ि दयौ 122
272 सरन आए को प्रभु, लाज धरिऐ 198
273 सरन गए को को न उबारयौ 18
274 सबै दिन एकै से नहिं जात 330
275 सबै दिन गए विषय के हेत 121
276 सुवा, चलि ता बन कौ रस पीजै 168
277 सोइ कछु कीजै दीन-दयाल 213
278 सोइ भलौ जो रामहि गावै 170
279 सोइ रसना, जो हरि-गुन गावै 177
280 सो कहा जु मैं न कियौ 208
281 संतनि की संगति नित करै 344
282 स्‍याम गरीबनि हूं के ग्राहक 24
283 स्‍याम-बलराम कौं सदा गाऊँ 367
284 स्‍याम भजन-बिनु कौन बड़ाई 30
285 हमारी तुमकौं लाज हरी 266
286 हमारे निर्धन के धन राम 182
287 हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ 320
288 हरि की सरन महँ तू आउ 138
289 हरि के जन की अति ठकुराई 51
290 हरि के जन सब तैं अधिकारी 43
291 हरि जू की आरती बनी 370
292 हरि जू तुम तै कहा न होइ 184
292 हुरि जू, मोसौ पतित न आन 247
293 हरि जू, हौं यातैं दुख-पात्र 316
294 हरि, तुव माया को न विगोयौ 64
295 हरि तैरौ भजन कियौ न जाइ 68
296 हरि तै बिमुख होइ नर जोइ 352
297 हरि बिनु अपनौ को संसार 112
298 हरि बिनु कोऊ काम न आयौ 322
299 हरि बिनु मीत नहीं कीउ तेरे 113
300 हरि-रस तौअब जाइ कहुँ लहियै 356
301 हरि सौं ठाकुर और न जन कौं 12
302 हरि सौं मीत न देख्‍यौ कोई 13
303 हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ 175
304 हरि, हौं महा अधम संसारी 282
305 हरि हौं महापतित, अभिमानी 234
306 हरि, हौं सब पतितनि कौ नायक 231
307 हरि हौ स‍ब पतितनि कौ राउ 230
308 हरि, हौं सब पतितनि कौ राजा 229
309 हरि, हौं सब पतितनि-पतितेस 227
310 हारी जानि परी हरि मेरी 312
311 ह्रदय की कबहुँ न जरनि घटी 186
312 है हरि नाम कौ आधार 174
313 है हरि-भजन कौ परमान 29
314 होउ मन, राम-नाम कौ गाहक 133
315 होत सो जो रघुनाथ ठटै 326
316 हो तौ पतित-सिरोमनि माधौ 225

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