सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली
(139) अरी भ्रमरी (बुद्धि)! श्यामसुन्दर के चरण कमलों का भजन कर! जहाँ रात्रि का (रात्रि में कमल के बंद होने का) भय नहीं है। जिसकी दृष्टि में सूर्य और चन्द्रमा समान है और जो सदा एक रस (नित्य प्रफुल्ल रहने वाला) है, वही कमल सुखों की राशि है। (श्रवण, कीर्तन, अर्चन, पादसेवन, स्मरण, वन्दन, दास्य एवं आत्म-निवेदन-रूप) भक्ति के नौ अंग ही जिसमें केसर हैं, प्रेम एवं ज्ञान का ऐक्य (ज्ञानमयी प्रेमाभक्ति) जहाँ रस (मधु) है, वेद, सनकादि, शुकदेव, नारद, शारदा आदि मुनि-देवगण रूप अनेक भ्रमर जहाँ गुणगान रूप गुजार करते रहते हैं। जहाँ मनोरंजन करने वाले खंजन के रूप में शिव तथा ब्रह्मा क्षण-क्षण में प्रवेश करते हैं (बार-बार जिन चरणों का स्मरण करते हैं) वहाँ सम्पूर्ण पुण्यों के कोष का ही जल भरा है (सभी पुण्यो के निवास वे चरण ही हैं) तथा श्यामसुन्दर स्वयं ही सूर्यरूप से वहाँ प्रत्यक्ष (उदित) रहते हैं। सूरदास जी कहते हैं- अरी भ्रमरी! (अज्ञानरूपी रात्रि में खिलने वाली विषय-भोगरूपी) कुमुदिनी का भ्रम (मोह) छोड़कर उस श्रेष्ठ कमल की आशा कर, जो प्रेम के समुद्र में प्रफुल्लित है और वहीं चलकर निवास कर। |
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