सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
अरे जीव! राम-नाम के स्मरण बिना तूने (मनुष्य) जन्म व्यर्थ खो दिया। तनिक-से (सांसारिक) सुख के लिये तूने अन्त (परलोक) क्यों नष्ट कर दिया? साधु पुरुषों के संग और (भगवान् की) भक्ति के बिना शरीर (जीवन) व्यर्थ नष्ट हो रहा है। जुआरी के समान हाथ झाड़कर (पुण्यरूपी समस्त पूँजी हारकर-नष्ट करके) संसार से (सगे-सम्बन्धियों से) अलग होकर (तुझे) चल देता है (परलोक में अकेले ही जाना है)। स्त्री-पुत्र, श्रीर और भवन आदि जिन्हें सुख देने वाला मानता है, इनमें तेरा (वास्तविक सम्बन्ध) कुछ नहीं है। अब मृत्यु का समय पास आ गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और तृष्णा ने (तेरे) मन को मोहित कर लिया, गोविन्द के गुणों को चित्त से भुलाकर (भगवान् के गुणों का स्मरण छोड़कर) किस निद्रा में सोया (किस अज्ञान में पड़ा) है। सूरदासजी कहते हैं- अरे अन्धे! तू भ्रम (अज्ञान) में भूला हुआ है। अपने चित्त में विचार कर। श्रीरामनाम का भजन कर ले और (जगत् के) दूसरे सब प्रपंचों को (दूसरी सब आसक्तियों को) छोड़ दे। |
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