सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी
पगले मन! (संसार में) (अपनी) स्थति (तूने) अटल समझ ली है? (जो) सम्पत्ति, स्त्री, पुत्र, भाई, कुटुम्बीजन और कुछ आदि को देखकर पागल (गर्वमत्त) हो रहे हो। मन में यह समझ देखो कि यह जीवन-यह मनुष्य-जन्म स्वप्न के समान थोड़ी देर का है। जैसे बादल की छाया तथा धूएँ से बने महल स्थिर नहीं रहते, वैसे ही जीवन भी स्थिर नहीं रहेगा। जब तक चलता-फिरता है, बातचीत करता है, देखता है, तभी तक स्त्री और पुत्र तेरे हैं (तुझसे स्नेह करते हैं)। प्राण निकल जाने पर (वे ही) प्रेत कहकर (तुझे) छोड़ देंगे, कोई पास (भी) नहीं आयेगा। अरे मूर्ख! मोहित! अज्ञानी! मन्दबुद्धि! (संसार में) कोई तेरा नहीं है। (आज) जो कोई तेरा हित करने वाला है, वही (मरने पर) कहेगा- (इसे घर से) जल्दी निकाल दो। आत्मीय एवं कुटुम्ब के लोग एक घड़ी एकत्र होकर बैठते हैं और रोते हैं, विलाप करते हैं- ठीक वैसे ही जैसे किसी कौए के मर जाने पर दूसरे कौए (वहाँ एकत्र होकर कुछ देर) ‘काँव-काँव’ करते हैं और फिर उड़ जाते हैं। (यदि गाड़ा गया तो) कीड़े अथवा (जलाया गया तो) अग्नि तेरे शरीर को खा जायगा, यह मन में समझ देख। सूरदास जी कहते हैं- (मनुष्य-जन्मरूप) यह सुअवसर फिर नहीं मिलने का; अतः दीनों पर दया करने वाले श्रीहरि का भजन कर ले। |
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