सुरसरी–सुबन रनभूमि आए -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग मारू




सुरसरी–सुबन रनभूमि आए।
बान-बरषा लगे करन अति क्रुद्ध ह्वै, पार्थ अवसान तब सब भुलाए।
कह्यौ करि कोप प्रभु अब प्रतिज्ञा तजौ, नहीं तौ जुद्ध निजु हम हराए।
सूर, प्रभु, भक्तबत्‍सल-विरद आनि उर, ताहि या विधि बचन कहि सुनाए।।271।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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