सारस्वत | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सारस्वत (बहुविकल्पी) |
सारस्वत का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार यह एक यज्ञ-विशेष था।
- 'महाभारत वन पर्व'[1] में लोमश जी युधिष्ठिर को योगशक्ति से सारी पृथ्वी पर विचरने वाले महातेजस्वी ऋचीकनन्दन जमदग्नि के प्रसर्पण[2] तीर्थ का वर्णन सुनाते हैं। लोमश जी कहते हैं- "युधिष्ठिर ! यह तीर्थ कुरुक्षेत्र का द्वार बताया गया हैं। नहुषनंदन राजा ययाति ने यहीं प्रचुर रत्नराशि की दक्षिणा से युक्त अनेक यज्ञों के द्वारा भगवान का यजन किया था। उन यज्ञों में इन्द्र को बड़ी प्रसन्नता हुई थी। यह यमुना जी का प्लक्षावतरण नामक उत्तम तीर्थ है। मनीषी पुरुष इसे स्वर्गलोक का द्वार बताते हैं। यहीं 'यूप' और 'ओखली' आदि यज्ञ साधनों का संग्रह करने वाले महर्षियों ने सारस्वत यज्ञों का अनुष्ठान करके अवभृथ स्नान किया था।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 128 |
- ↑ महाभारत वनपर्व, अध्याय 129, श्लोक 7
- ↑ घूमने फिरने का स्थान
- ↑ महाभारत वन पर्व अध्याय 129 श्लोक 11-22
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