- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 28वें अध्याय में भीम और सहदेव का पराक्रम तथा सहदेव के द्वारा उलूक के वध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]
विषय सूची
दोनों पक्ष के योद्धाओं का आपस में युद्ध
संजय कहते हैं- राजन! हाथी-घोड़ों और मनुष्यों का संहार करने वाले उस युद्ध का आरम्भ होने पर सुबलपुत्र शकुनि ने सहदेव पर धावा किया। तब प्रतापी सहदेव ने भी अपने ऊपर आक्रमण करने वाले शकुनि पर तुरंत ही बहुत से शीघ्रगामी बाण समूहों की वर्षा आरम्भ कर दी, जो आकाश में टिड्डी दलों के समान छा रहे थे। महाराज! शकुनि के साथ उलूक भी था, उसने भीमसेन को दस बाणों से बींध डाला। फिर शकुनि ने भी तीन बाणों से भीम को घायल करके नब्बे बाणों से सहदेव को ढक दिया। राजन! वे शूरवीर समरांगण में एक-दूसरे से टक्कर लेकर कंक और मोर के से पंख वाले तीखे बाणों द्वारा परस्पर आघात प्रत्याघात करने लगे। उनके वे बाण सुनहरी पांखों से सुशोभित, शिला पर साफ किये हुए और कानों तक खींच कर छोड़े गये थे। प्रजानाथ! उन वीरों के धनुष और बाहुबल से छोड़े गये बाणों की उस वर्षा ने सम्पूर्ण दिशाओं को उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे मेघ की जलधारा सारी दिशाओं को ढक देती है।
भीम और सहदेव के पराक्रम से रणभूमि की स्थिति
भारत! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए भीमसेन और सहदेव दोनों महाबली वीर युद्धस्थल में भीषण संहार मचाते हुए विचरने लगे। भरतनन्दन! उन दोनों के सैकड़ों बाणों से ढकी हुई आपकी सेना जहाँ-तहाँ अन्धकारपूर्ण आकाश के समान प्रतीत होती थी। प्रजानाथ! बाणों से ढके हुए भागते घोड़ों ने, जो बहुत से मरे हुए वीरों को अपने साथ इधर-उधर खींचे लिये जाते थे, यत्र-तत्र जाने का मार्ग अवरुद्ध कर दिया। मान्यवर नरेश! घुड़सवारों सहित मारे गये घोड़ों के शरीरों, कटे हुए कवचों, टूक-टूक हुए प्रास, ऋष्टियों, शक्तियों, खंगों, भालों और फरसों से ढकी हुई पृथ्वी बहुरंगी फलों से आच्छादित हो चितकबरी हुई सी जान पड़ती थी। महाराज! वहाँ रणभूमि में कुपित हुए योद्धा एक-दूसरे से भिड़कर परस्पर चोट करते हुए घूम रहे थे। कमल केसर की सी कान्ति वाले कुण्डलमण्डित कटे हुए मस्तकों से यह पृथ्वी ढक गयी थी। उनकी आंखें घूर रही थी और उन्होंने रोष के कारण अपने ओठों को दांतों से दबा रखा था। महाराज! अंगद, कवच, खड्ग, प्रास और फरसों सहित कटी हुई हाथी की सूड़ की समान भुजाओं, छिन्न-भिन्न एवं खड़े होकर नाचते हुए कबन्धों तथा अन्य लोगों से भरी और मांसभक्षी जीव-जन्तुओं से आच्छादित हुई यह पृथ्वी बड़ी भयंकर प्रतीत होती थी। इस प्रकार उस महासमर में जब कौरवों के पास बहुत थोड़ी सेना शेष रह गयी, तब हर्ष और उत्साह में भर कर पाण्डव वीर उन सबको यमलोक पहुँचाने लगे।
भीम के पराक्रम से कौरव सेना का भागना
इसी समय प्रतापी वीर सुबलपुत्र शकुनि ने अपने प्रास से सहदेव के मस्तक पर गहरी चोट पहुँचायी। महाराज! उस चोट से व्याकुल होकर सहदेव रथ की बैठक में धम्म से बैठ गये। उनकी वैसी अवस्था देख प्रतापी भीमसेन अत्यन्त कुपित हो उठे। भारत! उन्होंने आपकी सारी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया तथा सैकड़ों और हजारों नाराचों की वर्षा करके उन सब को विदीर्ण कर डाला। शत्रुदमन भीमसेन ने शत्रु सेना का विदीर्ण करके बड़े जोर से सिंहनाद किया। उनकी उस गर्जना से भयभीत हो शकुनि के पीछे चलने वाले सारे सैनिक घोड़े और हाथियों सहित सहसा भाग खड़े हुए।[1]
कौरव सेना का पुन: आकर पांडवों के साथ युद्ध करना
उन सब को भागते देख राजा दुर्योधन ने इस प्रकार कहा-‘अरे पापियो! लौट आओ और युद्ध करो। भागने से तुम्हें क्या लाभ होगा? जो धीर वीर रणभूमि में पीठ न दिखाकर प्राणों का परित्याग करता है, वह इस लोक में अपनी कीर्ति स्थापित करके मृत्यु के पश्चात उत्तम लोकों में सुख भोगता है। राजा दुर्योधन के ऐसा कहने पर सुबल पुत्र शकुनि के पीछे चलने वाले सैनिक ‘अब हमें मृत्यु ही युद्ध से लौटा सकती है’ ऐसा संकल्प लेकर पुनः पाण्डवों पर टूट पड़े। राजेन्द्र! वहाँ धावा करते समय उन सैनिकों ने बड़ा भयंकर कोलाहल मचाया। वे विक्षुब्ध समुद्र के समान क्षोभ में भरकर सब ओर छा गये। महाराज! शकुनि के सेवकों को इस प्रकार सामने आया देख विजय के लिये उद्यत हुए पाण्डव वीर आगे बढ़े।[2]
सहदेव द्वारा उलूक का वध
प्रजानाथ! इतने ही में स्वस्थ होकर दुर्धर्ष वीर सहदेव ने हंसते हुए से दस बाणों से शकुनि को बींध डाला और तीन बाणों से उसके घोड़ों को मारकर हंसते हुए से अनेक बाणों द्वारा सुबल पुत्र के धनुष को भी टूक-टूक कर डाला। तदनन्तर दूसरा धनुष हाथ में लेकर रणदुर्मद शकुनि ने नकुल को साठ और भीमसेन को सात बाणों से घायल कर दिया। महाराज! रणभूमि में पिता की रक्षा करते हुए उलूक ने भीमसेन को सात और सहदेव को सत्तर बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया। तब भीमसेन ने समरागंण में नौ बाणों से उलूक को, चौसठ बाणों से शकुनि को और तीन-तीन बाणों से उसके पाश्वरक्षकों को भी घायल कर दिया। भीमसेन के नाराचों को तेल पिलाया गया था। उनके द्वारा भीमसेन के हाथ से मार खाये हुए शत्रु सैनिकों ने रणभूमि में कुपित होकर सहदेव को अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया, मानो बिजली सहित मेघों ने जल की धाराओं से पर्वत को आच्छादित कर दिया हो।
महाराज! तब प्रतापी शूरवीर सहदेव ने एक भल्ल मारकर अपने ऊपर आक्रमण करने वाले उलूक का मस्तक काट डाला। सहदेव के हाथ से मारा गया उलूक युद्ध में पाण्डवों को आनन्दित करता हुआ रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस समय उसके सारे अंग खून से लथपथ हो गये थे। भारत! अपने पुत्र को मारा गया देख वहाँ शकुनि का गला भर आया। वह लंबी सांस खींचकर विदुर जी की बातों को याद करने लगा। अपनी आंखों में आंसू भरकर उच्छ्वास लेता हुआ दो घड़ी तक चिन्ता में डूबा रहा।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
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