समाज गायन

समाज गायन में दर्जनभर और उससे अधिक लोग भाग लेते हैं। प्रमुख गायक को 'मुखिया' कहा जाता है जबकि उसका अनुसरण करने वाले 'सेला' कहलाते हैं। गायन के समय आसपास बैठे भक्तों का समूह समाज शब्द से जाना जाता है।

  • प्राचीन मंदिरों में उनके अलग-अलग 'समाजी' अर्थात 'समाज गायन करने वाले' होते हैं।
  • बरसाना में लट्ठमार होली के अवसर पर कान्हा के घर नन्दगाँव से उनके सखा स्वरूप आते हैं। बरसानावासी राधा जी के पक्ष वाले 'समाज गायन' में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियां प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं।
  • लट्ठमार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच ज़ोरदार मुक़ाबला होता है। नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं। यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है। मेहमान-नवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा 'समाज गायन' का मुक़ाबला होता है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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