सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 38वें अध्याय में वैशम्पायन द्वारा सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

जनमेजय द्वारा वैशम्पायन से प्रश्न करना

जनमेजय ने वैशम्पायन जी से पूछा - विप्रवर! सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति किस हेतु से हुई? पूजनीय मंकणक मुनि कौन थे? कैसे उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई और उनका नियम क्या था? द्विजश्रेष्ठ! वे किसके वंश में उत्पन्न हुए थे और उन्होंने किस शास्त्र का अध्ययन किया था? यह सब मैं विधि पूर्वक सुनना चाहता हूँ।

वैशम्पायन द्वारा सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन करना

वैशम्पायन जी ने कहा-राजन! सरस्वती नाम की सात नदियां और हैं, जो इस सारे जगत में फैली हुई हैं। तपोबल सम्पन्न महात्माओं ने जहां-जहाँ सरस्वती का आवाहन किया है, वहां-वहाँ वे गयी हैं। उन सब के नाम इस प्रकार हैं- सुप्रभा, कान्चनाक्षी, विशाला, मनोरमा, सरस्वती, ओघवती, सुरेणु और विमलोदका। एक समय की बात है, पुष्कर तीर्थ में महात्मा ब्रह्मा जी का एक महान यज्ञ हो रहा था। उनकी विस्तृत यज्ञ शाला में सिद्ध ब्राह्मण विराजमान थे। पुण्याहवाचन के निर्दोष घोष तथा वेद मन्त्रों की ध्वनि से सारा यज्ञ मण्डप गूंज रहा था और सम्पूर्ण देवता उस यज्ञ-कर्म के सम्पादन में व्यस्त थे। महाराज! साक्षात ब्रह्मा जी ने उस यज्ञ की दीक्षा ली थी। उनके यज्ञ करते समय सब की समस्त इच्छाएं उस यज्ञ द्वारा परिपूर्ण होती थीं। राजेन्द्र! धर्म और अर्थ में कुशल मनुष्य मन में जिन पदार्थो का चिन्तन करते थे, वे उनके पास वहाँ तत्काल उपस्थित हो जाते थे। उस यज्ञ में गन्धर्व गीत गाते और अप्सराएं नृत्य करती थीं। वहाँ दिव्य बाजे बजाये जा रहे थे। उस यज्ञ के वैभव से देवता भी संतुष्ट थे और अत्यन्त आश्चर्य में निमग्न हो रहे थे; फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या है?

राजन! इस प्रकार जब पितामह ब्रह्मा पुष्कर में रहकर यज्ञ कर रहे थे, उस समय ऋषियों ने उनसे कहा- ‘भगवन! आपका यह यज्ञ अभी महान गुण से सम्पन्न नहीं है; क्योंकि यहाँ सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती नहीं दिखायी देती हैं’। यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने प्रसन्नतापूर्वक सरस्वती देवी की आराधना करके पुष्कर में यज्ञ करते समय उनका आवाहन किया। राजेन्द्र! तब वहाँ सरस्वती सुप्रभा नाम से प्रकट हुई। बड़ी उतावली के साथ आकर ब्रह्मा जी का सम्मान करती हुई सरस्वती का दर्शन करके ऋषिगण बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उस यज्ञ को बहुत सम्मान दिया। इस प्रकार सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मा जी तथा मनीषी महात्माओं के संतोष के लिये प्रकट हुई। राजन! जनेश्वर! नैमिषारण्य में बहुत से मुनि आकर रहते थे। वहाँ वेद के विषय में विचित्र कथा-वार्ता होती रहती थी। जहाँ वे नाना प्रकार के स्वाध्यायों का ज्ञान रखने वाले मुनि रहते थे, वहीं उन्होंने परस्पर मिल कर सरस्वती देवी का स्मरण किया। महाराज! राजाधिराज! उन सत्रयाजी (ज्ञानयज्ञ करने वाले) ऋषियों के ध्यान लगाने पर महाभागा पुण्य सलिला सरस्वती देवी उन समागत महात्माओं की सहायता के लिये वहाँ आयी। भारत! नैमिषारण्य तीर्थ में उन सत्रयाजी मुनियों के समक्ष आयी हुई सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती कान्चनाक्षी नाम से सम्मानित हुई। राजा गय गयदेश में ही एक महान यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे थे। उनके यज्ञ में भी सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती का आवाहन किया गया था। कठोर व्रत का पालन करने वाले महर्षि गय के यज्ञ में आयी हुई सरस्वती को विशाला कहते हैं।[1]

भरतनन्दन! यज्ञपरायण उद्दालक ऋषि के यज्ञ में भी सरस्वती का आवाहन किया गया। वे शीघ्रगामिनी सरस्वती हिमालय से निकल कर उस यज्ञ में आयी थी। राजन! उन दिनों समृद्धिशाली एवं पुण्यमय उत्तर कोसल प्रान्त में सब ओर से मुनि मण्डली एकत्र हुई थी। उसमें यज्ञ करते हुए महात्मा उद्दालक ने पूर्वकाल में सरस्वती देवी का ध्यान किया। तब मुनि का कार्य सिद्ध करने के लिये सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती उस देश में आयीं। वहाँ वल्कल और मृगचर्मधारी मुनियों से पूजित होने वाली सरस्वती का नाम हुआ मनोरमा; क्योंकि उन्होंने मन के द्वारा उन का चिन्तन किया था। राजर्षियों से सेवित पुण्यमय ऋषभद्वीप तथा कुरुक्षेत्र में जब महात्मा राजा कुरु यज्ञ कर रहे थे, उस समय सरिताओं में श्रेष्ठ महाभागा सरस्वती वहाँ आयी थीं; उनका नाम हुआ सुरेणु। गंगा द्वार में यज्ञ करते समय दक्ष प्रजापति ने जब सरस्वती का स्मरण किया था, उस समय भी शीघ्रगामिनी सरस्वती वहाँ बहती हुई सुरेणु नाम से ही विख्यात हुई। राजेन्द्र! इसी प्रकार महात्मा वसिष्ठ ने भी कुरुक्षेत्र में दिव्यसलिला सरस्वती का आवाहन किया था, जो ओघवती के नाम से प्रसिद्ध हुई। ब्रह्मा जी ने एक बार फिर पुण्यमय हिमालय पर्वत पर यज्ञ किया था। उस समय उनके आवाहन करने पर भगवती सरस्वती ने विमलोदका नाम से प्रसिद्ध होकर वहाँ पदार्पण किया था। फिर ये सातों सरस्वतियां एकत्र होकर उस तीर्थ में आयी थीं, इसीलिये इस भूतल पर सप्तसारस्वत तीर्थ के नाम से उसकी प्रसिद्धि हुई। इस प्रकार सात सरस्वती नदियों का नामोल्लेखपूर्वक वर्णन किया गया है। इन्हीं से सप्तसारस्वत नामक परम पुण्यमय तीर्थ का प्रादुर्भाव बताया गया है।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 38 श्लोक 1-21
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 38 श्लोक 22-42

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः