सदा दीखती रहती उसको -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग पीलू - ताल कहरवा


सदा दीखती रहती उसको निज में दोषावलि भारी।
समझ न पाती कैसे, क्यों उससे प्रसन्न सब नर-नारी॥
मेरे प्रति क्यों प्यार उसे है पता नहीं, कैसे इतना ?
पता नहीं मैं स्वयं खिंचा रहता क्यों उसके प्रति कितना ?
चकित, किंतु अति सहज प्रेम की बनी दिव्य वह पावन मूर्ति।
करती सदा सहज ही मेरे मनमें नव-नव रसकी स्फूर्ति॥
राधा-गुण-गण विमल अमोलक रत्न विलक्षण पारावार।
जितना गहरा जभी डूबता, पाता नव-नव रत्न अपार॥
नहीं पा सका, पा न सकूँगा कभी गुण-गणों की मैं थाह।
बनी रहेगी राधा-गुण-निधि में डूबे रहने की चाह॥
कैसे मैं क्या-क्या गुण गाऊँ, क्या भेजूँ उसको संदेश।
जीवन ओत-प्रोत सदा है उसमें सभी काल सब देश॥
मेरी उस भोली-भाली प्राणेश्वरिसे यह कहना सत्य।
मधुर तुम्हारी ही स्मृतिमें है जीवन लगा निरन्तर नित्य॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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