सतर होति काहे की माई।
आए नैन धाइ कै लीजै, आवत अब वै ह्याँ बेहाई।।
जिनि अपनौ घर दर परित्याग्यौ, उनि तौ उहाँ कछू निधि पाई।
परे जाइ वा रूप लूटि मै, जानति हौ उनकी चतुराई।।
बिनु कारन तुम सोर लगावति, वृथा होति का पर रिसहाई।
'सूर' स्याम मुख मधुर हँसनि पर, बिबस भए वै तन बिसराई।।2260।।