सत गुर म्हाँरी प्रीत निभाज्यो जी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
सद्गुरु से विरह निवेदन


सत गुर म्हाँरी प्रीत निभाज्यो जी ।। टेक ।।
थे छो म्हारा गुण रा सागर, ओगण म्हारूँ मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडा रा सबद सुणाज्यो। जी ।
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आँगणि रमता आज्यो जी ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, बेडो पार लँगाज्यो जी ।।127।।[1]


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. - निभाज्यो = निभा दीजिएगा। थे = आप। छो = हो, हैं। गुणरा = गुणों के। ओगण = अवगुणों पर, दोषों की ओर। जाज्यो = जाइयेगा, ध्यान मत दीजिएगा। म्हाँरू = मेरे। लोक = लोग। धीजै = प्रतीति करते वा संतुष्ट होते हैं। ( देखो - ‘उज्ज्वल देखि न धीजिए, बग ज्यों माँड़े ध्यान। धौरे बैठि चपेटिसी यों लै बूड़ै ज्ञान’ - कबीर )। पतीचै = मानता वा विश्वास करता है। मुखडारा = अपने श्री मुख से। लँगाज्यो = लगा दीजिएगा।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः