सजौ मान क्यौ, मन न हाथ, पिय सुमिरत उमँगि भरत।
मोसौ मानत बाम स्याम गुन गुनि अभिलाष करत।।
जो सो कानि न मानि, आन तिय रत, तिन बिनु न सरत।
अपमानतहू मुदित मूढ, जस अपजसहू न डरत।।
रस मै रिस विष दै बिचरत हठ, लालन प्रान हरत।
भ्रमि मै तौ रिस करति न रस बस, मोहि सौ उलटि लरत।।
स्वारथ बस इद्रीसमूह पर, बिरह अधीर धरत।
'सूरदास' घर की फूटै री, कैसै रह्यौ परत।।2091।।