सजल-जलद-नीलाभ श्याम तन परम मनोहर।
गोरोचन-चर्चित तमाल-पल्लव-सम सुन्दर॥
गोल भुजा आजानु प्रलम्बित मद मनोज हर।
कङ्कण-केयूरादि विभूषित परम रय वर॥
गुज्जावलि-परिवेष्टित, सुमन विचित्र सुशोभित।
चूड़ामण्डित रत्न-मुकुट शिखिपिच्छ नवल युत॥
घुँघराली अलकावलि, नील कपोल सुचुिबत।
कुण्डल-द्युति कमनीय गण्ड-आभापर उजलित॥
बिबाफल-बन्धूक पुष्प के सुषमाहारी।
अरुण अधरपर मधुर मुरलिका मजुल धारी॥
हास्य मधुरतम त्रिभुवन-मोहन अति मुदकारी।
नासा-अग्र सुराजित मुक्ता मणि-सहकारी॥
बिंधे नेत्र गोपी-कटाक्ष-शरसे शोभित नित।
जिनके भू-चालन से गोपीगण उन्मादित॥
सहज त्याग सब भोग निरन्तर सुख-सेवा-रत।
श्यामा-श्याम-सुखैकवासना अति मन अतुलित॥
रेखा-त्रय-राजित सुकण्ठमें खेल रही कल।
स्वर-संयुत मूर्च्छना, राग-रागिनियाँ निर्मल॥
कौस्तुभमणि देदीप्यमान विस्तृत वक्षःस्थल।
दिव्य रत्न-मणि-हार, सुमन-माला शोभित गल॥