सजनी मोतै नैन गए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


सजनी मोतै नैन गए।
अब लौ आस रही आदत की, हरि कै अंग छए।।
जब तै कमलवदन उन दरस्यौ, दिन दिन और भए।
मिले जाइ हरदी चूना ज्यौ, एकहिं रंग रए।।
मोकौ तजि भए आपुस्वारथी, वा रस मत्त भए।
'सूर' स्याम कै रूप समाने, मानो बूँद तए।।2328।।

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