विरह-पदावली -सूरदास
(221) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी! (मेरे शरीर पर) अचानक (वर्षा की) बूँद आ लगी। मैं कामदेव के मद से मतवाली (श्याम के प्रेम में निमग्न) होकर सो रही थी कि मेघों के गर्जना करते ही जग पड़ी। मयूर बोल रहे हैं, मेघ वर्षा कर रहे हैं और प्रेमी (जन अपने-अपने प्रेमास्पदों से) प्रेम कर रहे हैं। स्वामी! तुम मुझे कब मिलोगे, जिससे मैं भी सौभाग्यवती हो जाऊँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |