सखी री काहे रहति मलीन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग घनाश्री


सखी री काहे रहति मलीन ।
तनसिंगार कछू देखति नहि, बुधिबल आनँद हीन ।।
मुख तोमर नैननि नहि अँजन, तिलक ललाट न दीन ।
कुचिल वस्त्र, अलकै अति रूखी, दिखियत है तन छीन ।।
प्रेम तृषा तीनौ जन जानै, बिरही चातक मीन ।
'सूरदास' वीतति जु हृदय मैं, जिय जिन परबस कीन ।। 3267 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः