सखी री, काके मीत अहीर ।
काहे कौ भरि भरि ढारति हौ, नैननि कौ नीर ।।
आपुन पियत पियावत दुहि दुहि, इन धेनुनि के छीर ।
निसिवासर छिन नाहिंन बिछुरत, हे जो जमुना तीर ।।
मेरे हियै लगति दव दाहति, जारत तन के चीर ।
‘सूरदास’ प्रभु दुखित जानि कै, छाड़ि गए बेपीर ।। 3156 ।।