सखी रही राधामुख हेरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


सखी रही राधामुख हेरि।
चकित भई कछु कहत न आवै, करन लगी अवसेरि।।
बार बार जल परसि बदन सौ, बचन सुनावति टेरि।
आजु भई कैसी गति तेरी, व्रज मै चतुर निवेरि।।
तब जान्यौ यह तौ चद्रावलि, लाज सहित मुख फेरि।
'सूर' तबहिं सुधि भई आपनी, मिटी मोह अधेरि।।2082।।

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