सखी मेरी नींद नसानी हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
विरहोद्गार

राग आनंद भैरों


सखी मेरी नींद नसानी हो ।
पिय को पंथ निहारत, सिगरी रैण बिहानी हो ।।टेक।।
सब सखियन मिलि सीख दई, मन एक न मानी हो ।
बिनि देख्‍याँ कल नाहिं पड़त, जिय ऐसी ठानी हो ।
अंगिअंगि[1] व्‍याकुल भई, मुखि पिय पिय बानी हो ।
अन्‍तर वेदन विरह की, वह पीड़ न जानी हो ।
ज्‍यूँ चातक घन कूँ रटै, मछरी जिमि पानी हो ।
मीराँ व्‍याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो ।।87।।[2]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंगछीन
  2. नसानी = नष्ट हो गई। विहानी = व्यतीत हो गई। मानी = पसन्द आई। देख्याँ = देखे। ठानी = निश्चय कर लिया है। अंगि अंगि = प्रत्येक अंग में। वेदन = व्यथा। पीड़ = कष्ट। अंतर = भीतर। बिसरानी = भूल गई। सुध बुध = होश।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः