सखी पर होइँ तौ उड़ि जाउँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



सखी पर होइँ तौ उड़ि जाउँ ।
जहँ वै बसत नंद के डोटा, ढूंढ़ि लेउँ सोइ गाउँ ।।
कीजै कहा भई जौ ऐसी, कहो तो विष फल खाउँ ।
हिरदे मेरै दवा जरति है, गहिरे नीर अन्हाउँ ।।
बंधु बैर कहिबौ जदुपति सौं, ठाढ़ी नहिं ठहराउँ ।
'सूरदास' प्रभु असुर बिवाही, धरती फाटि समाउँ ।। 4175 ।।

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