जब परसे प्यारी चरन, परम प्रीति नंदनंद।
छुट्यौ मान हरषी प्रिया, मिट्यौ बिरह-दुख-द्वंद।।
उर आनंद बढ़ाइ, प्रेमकसौटी कसि पियहिं।
अवगुन मन बिसराइ, मिली प्रिया उठि स्याम सौ।।
हरषि मिले दोउ प्रीतम प्यारी। भई सखी सब निरखि सुखारी।।
तब दोउ उबटि सखी अन्हवाए। रुचिर सिंगार सिंगरि बनाए।।
मधुर मिष्ट भोजन मन भाए। दोउनि एकै थार जिमाए।।
दिये पान अँचवन करवाए। सुमन-सुगंध-माल पहिराए।।
ले बीरी अपनै कर प्यारी। दीन्ही बिहँसि बदन गिरिधारी।।
तबहिं सुफल हरि जीवन जान्यौ। परम हरष उर अंतर आन्यौ।।
मिलि बैठे दोउ प्रीतम प्यारी। तब सखियनि आरती उतारी।।
अति आनंद भरे दोउ राजै। अरस परस निरखत छवि छाजै।।
पाए बस करि कुंजबिहारी। बिहँसि कह्यौ तब पिय सौं प्यारी।।
सुनहु स्याम बरषा रितु आई। रचहु हिंडोरौ सुभ सुखदाई।।
है मन पिय यह साध हमारै। सब मिलि झूलहिं संग तुम्हारै।।
सुनि तिय बचन स्याम सुख पायौ। ऐसै करि हरि मान छुडायौ।।