सखि कोउ नई बात सुनि आई।
यह ब्रजभूमि सकल सुरपति सौ, मदन मिलिक करि पाई।।
घन धावन बगपाँति पटोसिर, बैरख तड़ित सुहाई।
बोलत पिक चातक ऊँचे सुर, फेरत मनौ दुहाई।।
दादुर मोर चकोर मधुप सुक, सुमन समीर सुहाई।
चाहत बास कियौ वृंदावन, विधि सौ कछु न बसाई।।
सीव न चाँपि सक्यौ तब कोऊ, हुते बल कुँवर कन्हाई।
'सूरदास' गिरिधर बिनु गोकुल, ये करिहै ठकुराई।। 3324।।