विरह-पदावली -सूरदास
(232) (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी! आज) कोई सखी (व्रज में) यह नयी चर्चा सुन आयी है कि देवराज इन्द्र से कामदेव ने यह सम्पूर्ण व्रजभूमि जागीर के रूप में पायी है। मेघ उसके दूत हैं, जिनके मस्तक पर बगुलों की पंक्तिरूपी पट्टा बँधा है तथा (जिनके हाथों में) बिजली रूपी झंडा शोभा दे रहा है और उच्च स्वर में कोकिल तथा पपीहे (इस भाँति) बोलते हैं, मानो उसकी विजय घोषणा कर रहे हों (अब वह कामदेव) मेढक, मयूर, चकोर, भौंरे, तोते, पुष्प और सुहावनी वायु के साथ वृन्दावन में ही निवास करना चाहता है। (किया क्या जाय) विधाता से कुछ वश नहीं चलता। जब यहाँ श्रीबलराम और नन्दकुमार कृष्णचन्द्र थे, तब तो कोई (व्रज की) सीमा दबा नहीं सका; किंतु अब उन गिरिधर के बिना गोकुल में ये (सब) स्वामित्व करेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शु. पा. 'मदन मिलकियत पाई।'
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