सकुचित कहत नहीं महाराज -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ
कैकेयी-बचन, श्रीराम के प्रति


  
सकुचित कहत नहीं महाराज !
चौहद वर्ष तुम्हैं बन दीन्हौं', मम सुत कौं निज राज।
पितु-आयसु सिर धरि रघुनायक, कौसिल्या, ढिग आए।
सीस नाइ बन-आज्ञा माँगी, सूर सुनत दुख पाए॥32॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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