सकुचत गए घर कौं स्‍याम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


सकुचत गए घर कौं स्‍याम।
द्वारेहीं तैं निरखि देख्‍यौ, जननी लागी काम।
यहै बानी कहत मुख तैं, कहाँ गयौ कन्‍हाई।
आपु ठाढ़े जननि-पाछैं, सुनत हैं चित लाइ।
जल भरन जुवती न पावैं, घाट रोकत जाइ।
सूर सब‍की फोरि गागरि, स्‍याम जाइ पराइ।।1426।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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