सकुच छाँड़ि अब इनहि जनाऊँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


सकुच छाँड़ि अब इनहि जनाऊँ।
ये तौ चले आपने काजहि, मैं काहै न समुझाऊँ।।
मन ही मन मै जीति जाहिंगे, जानिबूझि निदराऊँ।
ये चतुरई काछि कै आए, सो सब प्रगटि दिखाऊँ।।
बड़े गुनज्ञ कहावत दोऊ, इनकौ लाज लजाऊँ।
'सूर' स्याम राधा की करनी महिमा प्रगट सुनाऊँ।।2161।।

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