श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गोपी भाव की साधनासप्रेम हरिस्मरण।...... गोपी भाव में प्रधान बाते पाँच हैं-
आनन्दचिन्मयरस-प्रतिभाविता, श्रीकृष्ण प्रेमरसभावितमति, श्रीकृष्णगतप्राणा, श्रीकृष्ण सुखपरायणा व्रजगोपियों में ये पाँचों बातें पूर्णरूप से थीं। जिनका मन विषयों में फँसा है, जिन्हें भौतिक सौन्दर्य अपनी ओर खींचता है, जिनकी भोग्यपदार्थों में आसक्ति है, शरीर और शरीर सम्बन्धी वस्तुओं पर जिनकी ममता है, जो शरीर के आराम और विषय भोग की चाह रखते हैं और जिनका जीवन-प्रवाह निरन्तर भगवान की ओर बहने लगा है, वे लोग गोपीभाव की साधना के अधिकारी नहीं है। ऐसे लोग भगवान के आप्राकृत प्रेम-तत्त्व की सर्वोच्च अभिव्यक्ति दिव्य मधुररस को स्थूल कामतत्त्व या लौकिक आदिरस ही समझेंगे और भगवान तथा श्रीगोपीजनों का अनुकरण करने जाकर भयानक नरक-कुण्ड में गिर पड़ेंगे! जिनके हृदय में भोगों से सच्चा वैराग्य है, जिनका चित्त कामसुख से हट गया है और जिनकी इन्द्रियाँ अन्तर्मुखी होकर चिन्मय भगवद्-रस का आस्वादन करने के लिये आतुर हैं- वे ही महाभाग पुरुष गोपी-भाव का अनुसरण कर सकते हैं। श्रीभगवान की तीन स्वरूपा शक्तितयाँ हैं- संवित्, संधिनी और हृादिनी। भगवान का मधुर अवतार हृादिनी नामक आनन्दमयी प्रेमशक्ति के निमित्त से ही हुआ करता है। वे हृादिनी शक्ति साक्षात् श्रीराधिकाजी ही हैं। |
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