श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
युगलतत्त्व की एकताजैसे अग्नि और अग्नि की दाहिका-शक्ति, सूर्य और सूर्य की किरणें, चन्द्रमा और चन्द्रमा की चाँदनी एवं जल और जल की शीतलता सदा एक हैं, इनमें कभी काई भेद नहीं है, उसी प्रकार शक्तिमान् और शक्ति में कोई भेद नहीं है। जैसे अग्निशक्ति-अग्नि-स्वरूप के आश्रय के बिना नहीं रहती और जैसे अग्निस्वरूप अग्निशक्ति के बिना सिद्ध ही नहीं होता, उसी प्रकार शक्ति और शक्तिमान् का एकत्व-सम्बन्ध है। वह नित्य पुरुषरूप है और नित्य ही नारी-स्वरूप। ऐसे दो होते हुए ही वे नित्य एक हैं। स्वरूपतः कभी दो होकर रह ही नहीं सकते। एक के बिना एक का अस्तित्व ही नहीं रहता। पराशक्ति परब्रह्म शक्तिमान के आश्रय बिना नहीं रहती; इसलिये वह शक्तिमान् ‘परमात्मस्वरूपा’ ही हैं। इसी प्रकार शक्तिमान् परब्रह्म पराशक्ति के कारण ही शक्तिमान् हैं, इसलिये वे नित्य ‘पराशक्तिरूपा’ ही हैं। इन दोनों में भेद मानना ही भ्रम है। परंतु इस प्रकार नित्य अभिन्न होने पर पर इनमें प्रधानता शक्ति की ही है। ‘सच्चिनानन्दघन’ सर्वातीत तत्त्व भी ‘सच्चिनानन्द-शक्ति’ का आभाव हो तो ‘शून्य’ रह जाता है। इसलिये उसका सत्-तत्त्व सत्-शक्ति से, चित्-तत्त्व चित्-शक्ति से और आनन्द तत्त्व आह्लादिनी-शक्ति से ही स्वरूपतः सिद्ध है। परमात्मा इन्हीं शक्तियों को संधिनी, संवित् और लाह्दिनी-शक्ति भी बतलाया गया है। अपनी जिस स्वरूपाशक्ति के द्वारा भगवान सबको सत्ता देते हैं, उस शक्ति का नाम ‘संधिनी’ है; जिसे द्वारा ज्ञान या प्रकाश दिया जाता है, वह ‘संवित्’ शक्ति है और स्वय नित्य अनाद्यनन्त परमानन्दस्वरूप होकर भी जिस शक्ति के द्वारा अपने आनन्दस्वरूप की जीवों को अनुभूति कराते हैं तथा स्वयं भी आत्मस्वरूप विलक्षण परमानन्द का साक्षात्कार करते हैं, उस आनन्दमयी स्वरूपशक्ति का नाम लाह्दिनीशक्ति है यह परमाश्रयमय नित्य परमानन्द स्वरूप लाह्दिनी शक्ति ही स्नेह, प्रणय, मान, राग, अनुराग, भाव और महाभावरूप में भक्ति या प्रेम-शब्द-वाच्य होकर परम प्रेमसुधा का प्रवाह बहाती है और उसमें अवगाहन करके भक्त तथा भगवान दोनों ही परमानन्द का अतृप्त पान करते हैं। यह सब शक्ति का ही चमत्कार है। भगवान विष्णु, भगवान शंकर, भगवान राम, भगवान श्रीकृष्ण तथा अन्यान्य बड़े-छोटे किसी की भी उपासना शक्तिरहित रूप में हो ही नहीं सकती। जो शक्ति विष्णु को विष्णु, जो शक्ति शिव को शिव, जो शक्ति, राम को राम और जो शक्ति श्रीकृष्ण को श्रीकृष्ण बनाये हुए हैं, जिनके बिना उनकी स्वरूप-सत्ता ही नहीं रहती, उन शक्तियों के बिना जब वे शक्तिमान् रूप ही नहीं रहते, तब उनकी अकेले की-‘शक्तिरहित शक्तिमान्’ की उपासना कैसे हो सकती है। शक्ति न रहने पर तो उनका स्वरूप ही नहीं रहेगा। शक्ति को साथ माना जाय या न माना जाय, उपासना में शक्ति का विग्रह साथ रखा जाय या न रखा जाय, जब उपासना होगी तब शक्ति के साथ रहेगी ही। उसके बिना उपास्य तथा उसकी उपासना सम्भव ही नहीं। |
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