श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
लीला-पुरुषोत्तम का प्राकट्य
गत द्वापर के अन्त में स्वयं-भगवान ने प्रकट होकर विश्वब्रह्माण्ड को-धराधाम को धन्य किया था। उसी प्राकट्य-महोत्सव का महापर्व आज है-असुरों के और असुर-मानवों के अत्याचार से उत्पीड़ित प्रजाजन का उद्धार करने के लिये ही शुष्क जगत में अखिलरसामृतसिन्धु षड़ैश्वर्यपूर्ण स्वयं-भगवान का आविर्भाव होता है। अवतार के अनेक कारण होते हैं-साधुकों का परित्राण, दुष्टों का दमन, भूमि के भार का हरण, धर्म-संस्थापन, काम-कलुषित अधर्म के अभ्युत्थान को ध्वंसकर त्यागमय विशुद्ध प्रेमधर्म का प्रसार इत्यादि। भाद्रपद की अन्धकारमयी अष्टमी की अर्द्धरात्रि का समय, क्रूर कंस के कारागार का स्थान, चारों ओर दैत्योपम प्रहरियों का घोर नाद-यह सभी मानों उस समये के घोर देश, कराल काल और असुर मानव का दर्शन करा रहे थे। इसी समय, उसी अर्द्धरात्रि को, वहीं कंस के कारागार में स्वयं-भगवान का प्राकट्य हुआ। बस, उनके प्राक्यय का समय आते ही, सारी प्रकृति प्रफुल्लित हो गयी, धन्य हो गयी और अपने प्रभु का विलक्षण रूप से स्वागत करने लगी। काल समस्त शुभ गुणों से सम्पन्न और परम शोभामय हो गया। |
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