श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘नादब्रह्म - मोहन की मुरली’
‘नाद ही परम ज्योति है और नाद ही स्वयं परमेश्वर हरि है।’ नाद अनादि है। जब से सृष्टि है, तभी से नाद है। महाप्रलय के बाद सृष्टि के आदि में जब परमात्मा का यह शब्दात्मक संकल्प होता है कि ‘मैं एक बहुत हो जाऊँ’, तभी इस अनादि नाद की आदि-जागृति होती है। यह नाद ब्रह्मा ही शब्द-ब्रह्म का बीज है। वेदों का प्रादुर्भाव इसी नाद से होता है। नाद का उभ्दव परमेश्वर की सच्चिदानन्दमयी भगवती स्वरूपा-शक्ति से होता है और इस नाद से ही बिन्दु उत्पन्न होता है। यह बिन्दु ही प्रणव है और इसी को बीज कहते हैं।
‘सच्चिदानन्दरूप वैभवयुक्त पूर्ण परमेश्वर से उनकी स्वरूपा शक्ति आविर्भूत हुई, उससे नाद प्रकट हुआ और नाद से बिन्दु का प्रादुर्भाव हुआ। वही बिन्दु नाद, बिन्दु तथा बीज रूप से तीन प्रकार का माना गया है। बीज रूप बिन्दु जब भेद को प्राप्त हुआ, तब उससे अव्यक्त और व्यक्त प्रकार के शब्द प्रकट हुए। व्यक्त शब्द ही श्रुतिसम्पन्न श्रेष्ठ शब्द ब्रह्म हुआ। |
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