विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
14. श्रीकृष्ण की मृद्भक्षण-लीला तथा माँ यशोदा का पुनः उनके मुख में असंख्य विश्वब्रह्माण्डों को देखना
स्वर्ण कलशी से अंजलि भर जल लेकर जननी यशोदा ने श्रीकृष्णचन्द्र के चूर्णकुन्तलमण्डित सिर पर बिखेर दिया। वारिधारा भाल, नेत्र, कपोल, स्कन्ध एवं उदर का अभिषेक करती हुई चरणों को सिक्त करने लगी। श्रीकृष्णचन्द्र का स्नान हो गया। एक दिन था, ये श्रीकृष्णचन्द्र ही तो थे, रसातल-निमग्ना धरा का उद्धार करने गये थे, उद्धार कर लौट रहे थे। इनके विशाल वाराहविग्रह के दंष्ट्राग्र पर पर्वतादि-मण्डित धरा सुशोभित थी तथा चारों ओर अपरिसीम सागर हिलोरें ले रहा था। उस दिन सागर की यह अनन्त अम्बुराशि इनके एक रोमविवर को भी भर देने में समर्थ न हो सकी थी। पर आज जननी की अंजलि का जल ही पर्याप्त हो गया, उतने जल से ही जननी ने अरविन्द नेत्र श्रीकृष्णचन्द्र को नहला दिया-
स्नान के उपरान्त व्रजरानी पुत्र का अंगमार्जन एवं श्रृंगार करती हैं-
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (रीलीलाशुकस्य)
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |