श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
66. अपशकुन देखकर नन्द-यशोदा एवं बलराम जी का तथा अन्य व्रजवासियों का नन्द नन्दन के लिये चिन्तित हो एक साथ दौड़ पड़ना और श्रीकृष्ण के चरण-चिह्नों के सहारे कालीदह पर जा पहुँचना और वहाँ का हृदय विदारक दृश्य देखकर मूर्च्छित हो गिर पड़ना
व्रजराज महिषी अपने प्राणधन नीलसुन्दर के लिये रुचिकर भोग-सामग्री का निर्माण करने चली थीं। कि एक ग्वालिन छींक बैठी। तुरंत ही मुहूर्त-परिवर्तन के उद्देश्य से जननी आँगन में चली आयीं और कुछ क्षण विश्राम करने के अनन्तर मंगल द्रव्यों का स्पर्श कर पुनः पाकशाला की ओर लौटी। पर यह लो, आगे के पथ को काटती हुई वह बिल्ली भाग चली। व्रजरानी का हृदय दुर-दुर करने लगा। चिन्ताकुल हुई वे भवन से बाहर आ गयीं, तोरण द्वार के समीप जा पहुँचीं; किंतु कुशकुन यहाँ भी स्पष्ट परिलक्षित होने लगे। बायीं ओर अशुभ स्वर में वह काक बोल रहा था और दाहिने गर्दभ का रेंकना सुन पड़ा। फिर तो हृदय थामे जननी यशोदा, बाहर से भीतर, भीतर से बाहर गमन करती हुई रुँधे कण्ठ से अपने नीलमणि को पुकारने लग गयीं; मन में शान्ति का लेश भी न रह गया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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