- महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 18 में श्रीकृष्ण द्वारा शिव की महिमा का वर्णन हुआ है।[1]
विषय सूची
श्रीकृष्ण द्वारा शिव की महिमा का वर्णन
भगवान श्रीकृष्ण बोले- राजन! सूर्य के समान तपते हुए-से तेजस्वी उपमन्यु ने मेरे समीप कहा था कि ‘जो पापकर्मी मनुष्य अपने अशुभ आचरणों से कलुशित हो गये हैं, वे तमोगुणी या रजोगुणी वृति के लोग भगवान शिव की शरण नहीं लेते हैं। ‘जिनका अन्तःकारण पवित्र है, वे ही द्विज महादेव जी की शरण लेते हैं जो परमेश्वर शिव का भक्त है, वह सब प्रकार से बर्तता हुआ भी पवित्र अन्तःकरण वाले वनवासी मुनियों के समान है। ‘भगवान रुद्र संतुष्ट हो जाये तो वे ब्रह्मपद, विष्णुपद, देवताओं सहित देवेन्द्र पद अथवा तीनों लोकों का आधिपत्य प्रदान कर सकते है। ‘तात! जो मनुष्य मन से भी भगवान शिव की शरण लेते हैं, वे सब पापों का नाश करके देवताओं साथ निवास करते हैं। ‘बारंबार तालाब के तटभूमि को खोद-खोदकर उन्हें चौपट कर देने वाला और इस सारे जगत को जलती आग में झोंक देने वाला पुरुष भी यदि महादेव जी की आराधना करता है तो वह पाप से लिप्त नहीं होता है। ‘समस्त लक्षणों से हीन अथवा सब पापों से युक्त मनुष्य भी यदि अपने हदय से भगवान शिव का ध्यान करता है तो वह अपने सारे पापों को नष्ट कर देता है। ‘केशव! कीट, पतंग, पक्षी तथा पशु भी यदि महादेव जी की शरण में आ जायं तो उन्हें भी कहीं किसी का भय नहीं प्राप्त होता है। ‘इसी प्रकार इस भूतलपर जो मानव महादेव जी के भक्त हैं, वे संसार के अधीन नहीं होते-यह मेरा निश्चित विचार है।’ तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भी धर्मपुत्र युधिष्ठिर कहा-[1]
श्रीकृष्ण बोले- अजमीढ वंशी धर्मराज! जे सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, स्वर्ग, भूमि, जल, वसु, विश्वदेव, धाता, अर्यमा, शुक्र, बृहस्पति, रुद्रगण, साध्यगण, राजा वरुण, ब्रह्मा, इन्द्र, वायुदेव, उकार, सत्य, वेद, यज्ञ, दक्षिणा, वेदपाठी, सोमरस, यजमान, हवनीय, हविष्य, रक्षा, दीक्षा, सब प्रकार के संयम, स्वाहा, वौषट, गौ, श्रेष्ठ धर्म, कालचक्र, बल, यश, दम,बुद्धिमानों की स्थिति, शुभाशुभ कर्म, सप्तर्षि, श्रेष्ठ बुद्धि, मन, दर्शन, श्रेष्ठ स्पर्श, कर्मों की सिद्धि, सोमप, लेख, याम, तथा तुषित आदि देवगण, दीप्तिशाली गन्धप, धूमप ऋषि, वाग्निरुद्ध और मनोविरुद्ध भाव, शुद्धभाव, निर्माण-कार्य में तत्पर रहने वाले देवता, स्पर्शमात्र से भोजन करने वाले, दर्शनमात्र से पेय रस का पान करने वाले, घृत पीने वाले हैं, जिनके संकल्प करने मात्र से अभीष्ट वस्तु नेत्रों के समक्ष प्रकाशित होने लगती है, ऐसे जो देवताओं मे मुख्य गण है, जो दूसरे-दूसरे देवता हैं, जो सुपर्ण, गन्धर्व, पिशाच, दानव, यक्ष, चारण तथा नाग हैं, जो स्थूल, सूक्ष्म, कोमल, असूक्ष्म, सुख, इस लोक के दुःख,परलोक के दुःख, सांख्य, योग एवं पुरुषार्थों में श्रेष्ठ मोक्षरूप परम पुरुषार्थ बताया गया है, इन सबको तुम महादेव जी से ही उत्पन्न हुआ समझो। जो इस भूतल में प्रवेश करके महादेव जी की पूर्वकृत सृष्टि की रक्षा करते है, जो समस्त जगत्के रक्षक,विभिन्न प्राणियोंकी सृष्टि करने वाले और श्रेष्ठ हैं, वे सम्पूर्ण देवता भगवान शिवसे ही प्रकट हुए है।। ऋषि-मुनि तपस्याद्वारा जिसका अन्वेषण करते हैं, उस सदा स्थिर रहने वाले अनिर्वचनीय परम सूक्ष्म तत्त्वस्वरूप सदा शिव को मैं जीवन-रक्षा के लिये नमस्कार करता हूँ। जिन अविनाशी प्रभु की मेरे द्वारा सदा ही स्तुति की गयी है, वे महादेव यहाँ मुझे अभीष्ट वरदान दें। जो पुरुष इन्द्रियों को वश में करके पवित्र होकर इस स्तोत्र का पाठ करेगा और नियमपूर्वक एक मास तक अखण्डरूप से इस पाठ को चलाता रहेगा, वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त कर लेगा। कुन्तीनन्दन! इसके पाठ से सम्पूर्ण वेदों के स्वाध्याप का फल पाता है। क्षत्रिय समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर लेता है। वैश्य व्यापार कुशलता एवं महान लाभ का भागी होता है और शुद्र इहलोक में सुख तथा परलोक में सद्गति पाता है। जो लोग सम्पूर्ण दोषों का नाश करने वाले इस पुण्यजनक पवित्र स्तवराज का पाठ करके भगवान रुद्र के चिन्तन में मन लगाते हैं, वे यशस्वी होते हैं। भरतनन्दन! मनुष्य के शरीर मे जितने रोमकूप होते हैं, इस स्तोत्र का पाठ करने वाला मनुष्य उतने ही हजार वर्षो तक स्वर्ग में निवास करता है।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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| श्राद्ध के विषय में देवदूत और पितरों का संवाद
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| धर्म के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद
| वृषोत्सर्ग आदि के विषय में देवताओं, ऋषियों और पितरों का संवाद
| विष्णु, देवगण, विश्वामित्र और ब्रह्मा आदि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| वायु द्वारा धर्माधर्म के रहस्य का वर्णन
| लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन
| अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्त द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्म सम्बन्धी रहस्य का कथन
| दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव
| महादेव जी का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| स्कन्ददेव का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| भगवान विष्णु और भीष्म द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्यों के माहात्म्य का वर्णन
| जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन
| दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित
| दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन
| पाँच प्रकार के दानों का वर्णन
| तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना
| ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना
| नारद द्वारा हिमालय पर शिव की शोभा का विस्तृत वर्णन
| शिव के तीसरे नेत्र से हिमालय का भस्म होना
| शिव-पार्वती के धर्म-विषयक संवाद की उत्थापना
| वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार
| प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्म का निरूपण
| वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालन की विधि और महिमा
| ब्राह्मणादि वर्णों की प्राप्ति में शुभाशुभ कर्मों की प्रधानता का वर्णन
| बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन
| स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
| उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन
| मनुष्य को बुद्धिमान, मन्दबुद्धि तथा नपुंसक बनाने वाले कर्मों का वर्णन
| राजधर्म का वर्णन
| योद्धाओं के धर्म का वर्णन
| रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा
| संक्षेप से राजधर्म का वर्णन
| अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा
| दैव की प्रधानता
| त्रिवर्ग का निरूपण
| कल्याणकारी आचार-व्यवहार का वर्णन
| विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन
| अन्धत्व और पंगुत्व आदि दोषों और रोगों के कारणभूत दुष्कर्मों का वर्णन
| उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन
| प्राणियों के चार भेदों का निरूपण
| पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य
| मरकर फिर लौटने में कारण स्वप्नदर्शन
| दैव और पुरुषार्थ तथा पुनर्जन्म का विवेचन
| यमलोक तथा वहाँ के मार्गों का वर्णन
| पापियों की नरकयातनाओं का वर्णन
| कर्मानुसार विभिन्न योनियों में पापियों के जन्म का उल्लेख
| शुभाशुभ आदि तीन प्रकार के कर्मों का स्वरूप और उनके फल का वर्णन
| मद्यसेवन के दोषों का वर्णन
| पुण्य के विधान का वर्णन
| व्रत धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति
| शौचाचार का वर्णन
| आहार शुद्धि का वर्णन
| मांसभक्षण से दोष तथा मांस न खाने से लाभ
| गुरुपूजा का महत्त्व
| उपवास की विधि
| तीर्थस्थान की विधि
| सर्वसाधारण द्रव्य के दान से पुण्य
| अन्न, सुवर्ण और गौदान का माहात्म्य
| भूमिदान के महत्त्व का वर्णन
| कन्या और विद्यादान का माहात्म्य
| तिल का दान और उसके फल का माहात्म्य
| नाना प्रकार के दानों का फल
| लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओं की पूजा का निरूपण
| श्राद्धविधान आदि का वर्णन
| दान के पाँच फल
| अशुभदान से भी शुभ फल की प्राप्ति
| नाना प्रकार के धर्म और उनके फलों का प्रतिपादन
| शुभ और अशुभ गति का निश्चय कराने वाले लक्षणों का वर्णन
| मृत्यु के भेद
| कर्तव्यपालनपूर्वक शरीरत्याग का महान फल
| काम, क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति
| मोक्षधर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन
| मोक्षसाधक ज्ञान की प्राप्ति का उपाय
| मोक्ष की प्राप्ति में वैराग्य की प्रधानता
| सांख्यज्ञान का प्रतिपादन
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| योगधर्म का प्रतिपादनपूर्वक उसके फल का वर्णन
| पाशुपत योग का वर्णन
| शिवलिंग-पूजन का माहात्म्य
| पार्वती के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन
| वंश परम्परा का कथन और श्रीकृष्ण के माहात्म्य का वर्णन
| श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन और भीष्म का युधिष्ठिर को राज्य करने का आदेश
| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्
| जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता
| ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन-माहात्म्य
| गायत्री मंत्र का फल
| ब्राह्मणों की महिमा का वर्णन
| कार्तवीर्य अर्जुन को वरदान प्राप्ति और उनमें अभिमान की उत्पत्ति का वर्णन
| ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद
| वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन
| ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन
| ब्रह्मर्षि अगस्त्य और वसिष्ठ के प्रभाव का वर्णन
| अत्रि और च्यवन ऋषि के प्रभाव का वर्णन
| कप दानवों का स्वर्गलोक पर अधिकार
| ब्राह्मणों द्वारा कप दानवों को भस्म करना
| भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
| श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना
| श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना
| श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता
| भीष्म द्वारा धर्माधर्म के फल का वर्णन
| साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण
| युधिष्ठिर का विद्या, बल और बुद्धि की अपेक्षा भाग्य की प्रधानता बताना
| भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना
| नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य
| भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन
| भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना
| भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना
| भीष्म का प्राणत्याग
| धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार
| गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना
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