श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
53. शाल्व-शमन
शाल्व की प्रतिज्ञा पर उसके साथियों ने ही उस समय ध्यान नहीं दिया था तो दूसरा कौन देता। यह पराजय की खीझ थी, किन्तु शाल्व ने तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी। वह दिन रात्रि में केवल एक बार एक मुट्ठी रेत फांक लेता था। इस प्रकार रेणु-आहार करते हुए वह भगवान पशुपति की आराधना कर रहा था। एक वर्ष तक शाल्व इसी प्रकार कठोर तप करता रहा। भगवान उमापति प्रसन्न हुए। उन्होंने वरदान माँगने को कहा। शाल्व के समीप सौम नामक विमान था। भगवान शंकर के आदेश से दानवेन्द्रमय ने उसी विमान को शाल्व की इच्छानुसार सुधार दिया। त्रिपुर-निर्माता, असुर विश्वकर्मा मय के द्वारा परिष्कृत वह विमान पूरा नगर था, लौह का बना हुआ। सौभ विमान जल, स्थल में कहीं भी, पर्वत के विषम शिखर पर और दलदल में भी उतर सकता था। आकाश में स्थिर खड़ा रह सकता था। वह इतना विशाल था कि राजधानी का पूरा नगर उसमें समा सके, सम्पूर्ण सुविधा के साथ। अकल्पनीय तीव्र गति थी उसकी और इच्छानुसार उसे ले जाया जा सकता था किसी आँधी, वर्षा, ओलों आदि का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता था। सौभ विमान में भीतर रहने वालों को सब सुविधा थीं, किन्तु विमान के चलने का कोई शब्द नहीं होता था और उससे बाहर तनिक भी प्रकाश नहीं निकलता था। कुछ देर तक वह अदृश्य भी रह सकता था। सौभ युद्धीय विमान था। उसमें अस्त्र-शस्त्र भरे थे और उनके चारों ओर प्रयोग की सुविधा थी। वह बहुत सुदृढ़ था। अतः उस पर आक्रमण करके कोई उसे क्षति पहुँचा सके, यह अत्यन्त कठिन था। इतना होने पर भी शाल्व श्रीकृष्णचन्द्र से सम्मुख युद्ध करने से बचता रहा। वह जानता था कि उनके चक्र का प्रतिकार नहीं है और गरुड़ के लिए कोई विमान- सुर असुर सबके विमान तुच्छ हैं। लेकिन जब राजसूय यज्ञ के अवसर पर इन्द्रप्रस्थ में श्रीकृष्ण ने भरी सभा में शिशुपाल को मार दिया, शाल्व वहाँ नहीं था। सुनते ही वह क्रोधोन्मत्त हो गया। शिशुपाल अत्यन्त घनिष्ट मित्र था शाल्व का। यह अवसर भी था द्वारिका पर आक्रमण करने का क्योंकि श्रीकृष्ण इन्द्रप्रस्थ में थे। राजसूय के अन्त में श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने पुत्रों को द्वारिका भेज दिया था सात्यकि के साथ। केवल वे रह गये थे इन्द्रप्रस्थ में। शाल्व समझता था कि द्वारिका आकाश से आक्रमण होने पर बहुत शीघ्र नष्ट कर दी जा सकेगी। बहुत बड़ी सेना एकत्र कर रखी थी उसने। वह बहुत समय से आक्रमण की तैयारी में लगा था। उसने अवसर का लाभ उठाने के लिए शीघ्रपूर्वक सेना को दौड़ाया और उस विशाल सेना ने अचानक द्वारिका घेर लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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